Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ अनुसंधान- १५•59 श्रेणिकनी अंतेऊरी रे, दस अने (अंते) उरी जाणि । तप उपशमना कुंपला रे, पुहती सवि निर्वाणि ॥६४॥ काली रयणावलि तपि रे, कनकावलीइं सुकालि । कृष्णा महासति महसीहिं रे, लघुसीहिंडं महाकालि ॥६५॥ सत्तमी प्रतिमा वही रे, कृष्णा देविइ च्यारि । सर्वभद्र लघु- महाकृष्णा रे, वहती पुहनी (ती) पारि ॥ ६६ ॥ सर्व थकी महाभद्र करीन, वीर सुकृष्णा नारि । भद्रा वर प्रतिमा वही रे, राम सुकृष्णा धारि ॥६७॥ पितु कृष्णा मुगता वली रे, आंबिल तप व्रधमान । महसेणा कृष्णा करी रे, लुणीआं दुखनिदान ॥६८॥ (१३) ढाल (परममुणि झाणनो ) तिजीअ बत्तीस वरइब्भकुलबालिको सहसपुरिसेहिं सम संजमं पालको । चउदपूरवधरो नेमिजिण-रत्तओ कुमरथावच्चर सिद्धिसुह पत्तओ ॥६९॥ गाहा सुच्चा जिणं (णि) दवयणं, सच्चं सोअं ति पभणिओ हरिणा । कि सच्चं ति पव्वुत्तो, चि ( चि) तंतो जाइसरणाउ ॥७०॥ संबुद्धो जो पढमं, अज्झयणं सच्चमेव पन्नवइ । कच्छुलनारयरिसिं, तं वंदे सुगइगइपत्तं ॥ ७१ ॥ नारयरिसिपामुक्खे, वीसं सिरिनेमिनाहतित्थंमि । पन्नरस पासतित्थे, दस सिरिवीरस्स तित्थंमि ॥७२॥ पत्ते अबुद्धसाहू, नमिमो जे भासिऊं (उं) सिवं पत्ता । पणयालीसं इसिभासिआई अज्झयणपवराई ॥ ७३ ॥ (१४) ढाल ( त्रिभुवन जिनपति वीर नइ ) राग - सिंधुओ सहस पुरुषस्यूं संयमी, सिरिथावच्चा गुरु पासिइ रे, पासिइ रे । ते पूरव सम अभ्यासीआ रे ॥७४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118