Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान-१५ • 62 गंगजल विमल गंगेअउ, जिण पालि उसग्गि रे । धर्मरुचि अणाकुट्टिओ, सरवारथि सग्गि रे ॥१९॥ साहु जिणदेव ते केवली, कपिलकेवली जोइए रे । पंचसि चोर ते बोहिआ, सुणइ कौतक होइ रे ॥१००॥ तपसिहरि केसिउ सुर भज्यो, इखुकार नरिंदो रे । तस घरणी कमलावती, सती सुभगनो कंद(दो)रे ॥१०१॥ भृगुप रोहितजसा भारिया, तस वरसुत दोइ रे । ए षट संयमि केवली, मुगति एकठां होइ रे ॥१०२॥ खित्ति मुणि पडिबोहिओ, मुनी संपतीराय रे । उत्तराध्ययनि मोटूं चरी, सुणिहं कौतुक थाइ रे ॥१०३॥ सेणिअसुत अणाथीमुणी, समुदपालिउ सीध रे । जय-विजयघोष साहु हवे, सिवरमणी अ लीध रे ॥१०४||
(१८) ढाल (जिन त्रिभुवन कीरति विस्तरी) गंगाजल भर विचि केवली, अनिकासुतथि वरइ सिवकली । आज तिहा प्रयाग तीरथ वली, करीउ तिहां महीमा सुर मली ॥१०५।। कटुतुंबी धर्मरुचिं गली, तेणि कर्मतती तिहां बहु दली । देवलासुत रायरिसी गणूं, कुरमासुत दो रयणी तणूं ॥१०६।। मुणि चंडरुद्दसीसो सुणूं, तस खंतिगुणा केता भणूं । निजगुरु जेणे पडिबोहिओ, तेणेइं गुरु पणि वर केवल लीओ ॥१०७|| जेणिइं वर बत्तीस रमणि तिजी, जेणि उज्झिअभिक्खा भर भजी । सोइ वीरपसंसिअ धण मुणी, सरवारथ सिद्धिइ सो गुणी ॥१०७॥ थुणि सीतलसूरी अ केवली, तस चउ भाणेजा तिम वली । दस सुत विपाक धूरि जाणीइं, मुणि दाणि सुबाहु वखाणीइं ॥१०८।। नव भद्दनंद पमुहा तहा, रोहा मुणि पिंगलमुणि कहा । एकादशअंगी अ भगवती, कहीउ खंदगतावस यती ॥१०९॥ जिण वीर सीस ती-सय मुणी, बहु वरिस छ? तवसी सुणी । मासं संलेहिअतणूं वरो, जाओ सामाणिअसुरवसे ॥११०॥
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