Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान - १५ • 25
दत्तप्रकाशो रविरग्रहोऽपि
यच्चोत्तमानां चितपञ्चवर्णं विघ्नावलिव्यालविलोपितूर्णम् । कलाशिखाशालिशिरः शिखण्डिश्रीखण्डनं खेलति हृद्धनेषु
पापापनोदे पटुवाद्यमानः सद्यो यदेवोच्चरतीति हेतोः । श्रीवासुदेवः सुतनिर्विशेषं चुम्बत्यबङ्गिप्रबलास्थिकम्बुम्
नाऽलीकसूनोर्लपनः प्रतोलीरालोक्य रुद्धाः सकलान्यवर्णैः । पूतं परस्पर्शभयेन जाने यन्निर्ययौ भिन्नकपोलभित्ति तिस्रोऽपि रेखास्त्रिजगन्ति गौरज्योति: कलासिद्धिशिलाविशाला । सिद्ध: सबिन्दुस्तदुपर्यतो यल्लोकस्य किं रूपकमल्पमातम्
पञ्चार्हदादिप्रथमाक्षरोत्थं
जैना: समग्रागमसारमाहुः । षड्बिन्दुखण्डेन्दु-विरिञ्चिनामोपनं यदन्येऽप्यधिकं त्रयीतः
योगिप्रधान प्रणिधान धारागोदावरीखेलिवितीर्णलक्ष्मि । हालक्षमापालति यत्पुरस्थै र्वर्णद्विपञ्चा[श]दुदारवीरैः
यद्वीजमेकेन्दुकलां दधानां जिह्वादलं यावदलंकरोति ।
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