Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 33
________________ अनुसंधान - १५ • 28 1181 11411 सीमन्धरं निर्ज्जरकोटिसेव्यं तीर्थङ्करं क्षेमकरं जनानाम् । सद्देशनाप्रीणितभव्यसङ्घ - मनन्तलक्ष्मीप्रदमानमामि कैवल्यलक्ष्म्या तिथिमेयकर्म - भूमी: पवित्राः सममेव चकुः । उत्कृष्टकाले शतसप्ततिस्ते तीर्थङ्करा मे शिवदा भवन्तु स्वर्गे च पातालतले विशाले भूलोकमध्ये बहुतीर्थमाले । भूतानि भावीनि च सन्ति यानि जैनानि चैत्यानि नमामि तानि ॥६॥ संदर्शितानेकभवस्वरूपं शश्वत्पतङ्गप्रमिताङ्गरूपम् । मिथ्यात्ववल्लीलवने लवित्रं ज्ञानं जगद्दीपमहं स्मरामि सिद्धायिका वीरजिनस्य तीर्थ सेवापराणां भविकव्रजानाम् । विघ्नापहा शासनदेवतेयं माङ्गल्यमालामतुलां तनोतु ॥७॥ ॥८॥ इति नन्दीश्वरादिस्तुतयः समाप्ताः ॥ ( २ ) जय जय पईव कुंतलकलाव विलसंत बहुलकज्जलसहाव । कलहूयकंति मरुदेवि - नाभि- निव-तणय रिसह वसहंक सामि ||१|| धण मिहुण तियस नरनाह देव निव वयरजंघ मिहुणे स चेव । सोहम्म - विज्ज- अच्चुय - चक्कि - सव्वट्टसिद्धि अवयरीअ इत्थि ॥२॥ आसाढबहुल चवीउ चउत्थि कसिणट्ठमि जायउ मासि चित्ति | इक्खा भूमि नयरी विणीय धणु पँचसय तिहि तणुपणीय || ३ || चित्तट्ठमि गिन्हइ सामि दिक्ख चउ सहस समन्निय कसिणपक्खि । इग्यारसि बहुली फग्गुणस्स संपज्जइ केवलनाण तस्स ॥४॥ माह वदि तेरसि उज्जल निय जसि पुव्वलक्ख चुलसीय जूय । जय पढम जिणेसर सूअ भरहेसर करि पसाउ निम्मलचरीय ॥५॥ ॥ इति श्री आदिनाथस्तोत्रम् ॥ ( ३ ) वीससेण अइरादेवि नंदण तणुहरण जय अपुव्व हरिणंक अखंडिय तणु किरण | सिरिसिरिसेण कुरु - नर सोहम्म खयर निव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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