Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसंधान - १५ • 10
व्याजादभूच्चम्पकपुष्पवृष्टिः
नारीर्निरीक्ष्याभरणाद्भुताङ्गीः शृङ्गज्वलद्दीपकपङ्क्तिभङ्ग्या । टङ्कावलीस्तत्र महे महेभ्यगेहश्रियोऽप्याऽऽमुमुचुः स्वभाले ॥४१॥
दीपोत्सवे नूनमगादलक्ष्मीर्लक्ष्मीश्च वेश्मस्वकृतप्रवेशम् तस्मादलम्भ्यन्त मिथोऽबलाभिद्दीपच्छलात्काञ्चनकन्दलानि
अग्रे निजस्वामिजहासहर्षादावासलक्ष्मीरिति वीक्ष्यते स्म । तद्वारवक्त्रे गृहरत्नराजी ताम्बूलरङ्गारुणदन्तपङ्क्ति:
निर्माप्य मे रात्रिकदीपिकाः स
श्रीपर्वराट् पुम्भिरलभ्यमानम् । अशूशुधद्धेश्मसु शोकशत्रुं शङ्के सपत्राकरणाय रात्रौ
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॥४२॥
ध्वान्तद्विषा च्छिन्नरुचोऽरयो नश्चण्डांशवोऽमी इति शङ्कया किम् । रोषारुणास्तेष्वधिरुह्य तारास्तस्थुः पृथुस्थालगदीपदम्भात्
स्वस्वालयेभ्यो निरयुः कुमारा मेराज्यकै राजितपाणिपद्मा: । कर्तुं नु चामीकरकेतकैस्तज्जापाय दर्भासनजा सपर्याम् (?) ॥४५ ॥
॥४३॥
॥४४॥
॥४६॥
आह्लादलक्ष्मीं बहुलामवाप्य केऽप्यग (ग्र) धामान्तर तिह्यमांतीम् (?)
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