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सम्राट् भरत : अनासक्त योगी इन्हें क्या करना है । आप जैसे ही प्रदक्षिणा से लौटकर आयेंगे और महाराज भरत के सामने प्रासाद की शोभा का वर्णन करेंगे, अपने उपहारों का प्रदर्शन करेंगे, आपकी शंका का समाधान प्रत्यक्ष प्रकट हो जायेगा। उठा लीजिए कटोरा। यह यात्रा आपके लिए अब अनिवार्य हो गई है। इसमें किसी ओर से किसी छल को स्थान नहीं है। इस कार्य को कर दें।"
देव अब वचन-बद्ध था। देवी-चमत्कार भी निषिद्व था। एक-एक पग संभालता हुआ, कटोरे पर दृष्टि जमाये वह महल में घूमा किन्तु मन-ही-मन असिधारी सैनिकों की उपस्थिति से आतंकित रहा । वापस आकर सूर्यास्त के समय वह सम्राट के पास पहुँचा और प्रज्वलित कटोरा उनके पास रख दिया तो उस समय उसका भाव ऐसा था मानो सिंह के पंजे से प्राण बचाकर हिरण भाग खड़ा हुआ
"कहो, कैसी रही यात्रा, तुम्हारी, विप्रवर?" महाराज भरत ने पूछा । "मैं विप्र नहीं हूँ," कहकर देव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गया। बोला :
"मुझे क्या पता महाराज, कि यात्रा क्या थी, कहां तक की थी, क्या साजशृंगार था, क्या-क्या वस्तुएं उपहार के लिए प्रस्तुत थीं । मेरा तो सारा ध्यान कटोरे पर और कटोरे में किनारों तक भरे तेल की एक-एक बूंद पर और प्रज्वलित बाती पर था। बहुत बड़ी विपत्ति के बीच मैंने अपने प्राणों को सुरक्षित रखा है।"
"शंका का समाधान हुआ?" महाराज ने पूछा।
"निश्चित रूप से हो गया" देव बोला। "आप सचमुच राजर्षि हैं। सारी भोग्य-सम्पदा के बीच आपका ध्यान केवल धर्म और आत्मा पर केन्द्रित है—जैसे मेरे प्राण कटोरे में भरे तेल और बाती की लौ के ऊपर अटके रहे । असावधानी के प्रत्येक क्षण में कर्मबन्ध का डर उपस्थित है, यह अनुभूति धर्म के केन्द्रबिन्दु से आपको डिगने नहीं देती।"
"यही सावधानी और श्रम, श्रमण धर्म है।" देव ने मन में सोचा और कहा, "मेरी सब जिज्ञासाएँ शान्त हो गई। आप चिरजीवी हों"
यह कहकर देव अकस्मात् विलीन हो गया।
भरत की वैराग्य-भावना दिन-पर-दिन प्रबल होती गई, उनका आत्मचिन्तन गहन होता गया। साम्राज्य अपनी सुचारु गति से चल रहा था। निरासक्त भरत अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे।
प्रव्रज्या का एक क्षण आता है जिसे काल-लब्धि कहते हैं । एक दिन महाराज भरत दर्पण के सामने खड़े थे कि उन्हें सिर में एक श्वेत बाल दिखाई दिया। "जीवन में जरा के, बार्धक्य के प्रवेश की अगवानी इसी श्वेत पताका से होती है। जन्म-जरा-मृत्यु स्वाभाविक परिणमन है," परमार्थ में भरत की आस्था और अधिक बलवती हो गई।