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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
नीलगिरि के वृक्षों की झूमती कतारें, हरे-भरे खेत, श्यामल-श्वेत मेघ, घने जंगल, नारियल और सुपारी के पेड़, लौंग और चन्दन को सुरभि से महकते वन-प्रान्तर अन्यत्र कहाँ हैं ?
श्रवणबेल्गोल की इस विन्ध्यगिरि पहाड़ी का स्थानीय नाम दोडबेट्टा है जिसका अर्थ होता है बड़ी पहाड़ी। यह समुद्रतल से 3347 फुट ऊपर है और नीचे के मैदान से 470 फुट ऊंची है । शिखर पर पहुंचने के लिए लगभग 650 सीढ़ियां हैं। ऊपर समतल चौक घेरे से घिरा है। घेरे के बीच में छोटे-छोटे तलघर हैं जिनमें अनेक जिन प्रतिमाएं सुरक्षित हैं । घेरे के चारों ओर कुछ दूरी पर भारी दीवार है जिसमें कहीं-कहीं प्राकृतिक शिलाएँ भी उसका भाग बन गई हैं।
चौक के ठीक बीचों-बीच उत्तरमुख स्थित है भगवान बाहुबली की विश्व-वन्द्य विशाल मूर्ति-दिगम्बर, निर्विकार, कायोत्सर्ग मुद्रा में। श्रवणबेल्गोल की ओर बढ़ते हुए 15 मील की दूरी से ही यह मूर्ति दिखाई देने लगती है और जल्दी से जल्दी पहुंच जाने की भावना हृदय को आनन्द-विभोर किये रहती है । मूर्ति की विशालता का अकन पुराने ग्रन्थों में हाथ और अंगुलियों के माप से दिया हुआ है।
पूरे पर्वत-खण्ड में से इतनी विशाल मूर्ति का आकार कल्पना में उतारने और भारी हथौड़ी तथा छैनियों की नाजुक तराश से मूर्ति का अंग-अंग उकेरने का काम जितनी एकाग्रता और संयम-साधना से हुआ होगा, इसकी कल्पना करने पर रोमांच हो उठता है। नुकीली और संवेदनशील नाक, अर्धनिमीलित ध्यानमग्न नेन्द्र, सौम्य स्मित ओष्ठ, किंचित् बाहर को निकली हुई ठोडी, सुपुष्ट कपोल, पिण्डयुक्त कान, मस्तक तक छाये हुए धुंघराले केश आदि, इन सभी से दिव्य आभा वाले मुख-मण्डल का निर्माण हुआ है। बलिष्ठ विस्तृत पृष्ठभाग का कलात्मक निर्माण, आठ मीटर चौड़े बलशाली कन्धे, चढाव-उतार रहित कुहनी और घुटनों के जोड़, संकीर्ण नितम्ब जिनकी चौड़ाई सामने से तीन मीटर है और अत्यधिक गोल है, ऐसे प्रतीत होते हैं मानो मूर्ति को संतुलन प्रदान कर रहे हों। भीतर की और उकेरी गई नालीदार रीढ़, सुदृढ़ और अडिग चरण, सभी उचित अनुपात में मूर्ति-कला की उन अप्रतिम परम्पराओं की ओर संकेत करते हैं जिनका शारीरिक प्रस्तुति से कोई सम्बन्ध नहीं है क्योंकि तीर्थंकर या साधु का अलौकिक व्यक्तित्व केवल भौतिक जगत् की कोई सत्ता नहीं, उसका निजत्व तो आध्यात्मिक तल्लीनता के आनन्द में है। त्याग की परिपूर्णता निरावरण नग्नता में है। सुदृढ़ निश्चय, कठोर साधना और आत्म नियन्त्रण की परिचायक है खड्गासन-मुद्रा। ___इस दिगम्बर मूर्ति की नग्नता के सम्बन्ध में गाँधीयुग के चिन्तक और साहित्य-सर्जक काका कालेलकर के मार्मिक उद्गार हैं : ___ "सांसारिक शिष्टाचार में फंसे हुए हम उस मूर्ति की ओर देखते ही सोचने लगते हैं कि यह मूर्ति नग्न है । लेकिन क्या नग्नता वास्तव में हेय है ? अत्यन्त