Book Title: Antardvando ke par
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 168
________________ कमांक 56 57 58 प्राचार्य-नाम गुरु-नाम लेख क्र० शक संवत् विशेष विवरण वर्धमानदेव । - 176 1050 इनकी और प्रभाचन्द्र सि० देव की साक्षी से शान्तलदेवी की माता ने रविचन्द्रदेव संन्यास लिया था। गण्डविमुक्त सि० - 371 1050 मू० दे० पू० । इनके शिष्य दण्डनायक भरतेश्वर ने भुजबलि स्वामी का देव 204 अ० 1070 पादपीठ निर्माण कराया। नयकोत्ति ___1050 विष्णुवर्धन नरेश के राज्यकाल में नयीत्ति का स्वर्गवास हो जाने पर - कल्याणकीर्ति को जिनालय बनवाने व पूजनादि के हेतु भूमि का दान दिया गया। कल्याणकीत्ति भानुकीतिदेव - 532 अ० 1057 माधवचन्द्रदेव शुभचन्द सि० देव 532 " मू० दे० पू०। नयकीत्तिदेव 517 अ० 1065 म०म०(हिरिय) नयकीर्ति देव (चिक्क) शुभकीतिदेव 81 अ.1067 त्रिकालयोगी - 529 10 1067 अभयदेव 529 " मूल संघ। कु० मलधारिदेव -.. 476 अ० 1080 हुल्ल मंत्री के गुरु । 61 अन्तर्वेन्द्रों के पार 67 68

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