Book Title: Antardvando ke par
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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क्रमाक
आचार्य-नाम
गुरु-नाम, लेखक. शक संवत् विशेष विवरण
___136
102
अ०1197
103
104
1200
"
105 106 107
1205
चन्द्रकीत्ति
345 भट्टारक प्रभाचन्द्र
3461 भट्टारक
349 मुनिचन्द्रदेव उदयचन्द्रदेव 476
म. म. पग्रनन्दिदेव चन्द्रप्रभदेव कुमुदचन्द्र
451 माधनन्दि सि० च० बालचन्द्रदेव नेमिचन्द्र पं० देव 557 अभिनव
353 पण्डिताचार्य पद्मनन्दिदेव विद्यदेव 375 चारुकीति पं०
482 आचार्य " (अभिनव) - 472
470 मल्लिषेणदेव लक्ष्मीसेन भट्टारक 253
होयसलराय राजगुरु । सम्भवतः ये ही उस शास्रसार के कर्ता हैं जिसका उल्लेख प्रारम्भ के एक श्लोक में आया है। ० दे० । इंगिलेश्वर बलि।
108 109
अ०" अ० 1233
110 111
अ० 1238 म० दे० पु. । समाधिमरण। अ० 1239
112
अ० 1247 एक शिष्य ने मंगायि बसदि निर्माण कराई।
अन्तदन्द्रों के पार
"
113
अ० 1320 निषधा।

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