Book Title: Antardvando ke par
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 139
________________ स्मारक चतुष्टय 103 सिद्धर बसदि यह छोटा-सा मन्दिर है । इसमें सिद्ध भगवान की 3 फुट ऊंची मूर्ति विराजमान है । मूर्ति के दोनों ओर 6-6 खचित कलात्मक स्तम्भ हैं। दायीं ओर के स्तम्भ पर अर्हद्दास कवि का पण्डितार्य की प्रशस्ति वाला लेख (क्र. 360) है। इस स्तम्भ में पीठिका पर विराजमान एक आचार्य अपने शिष्य को उपदेश देते दिखाए गए हैं। दूसरे चित्र में जिनमूर्ति उत्कीर्ण है। प्रखण्ड बागिलु यह द्वार का नाम है । पूरा दरवाजा अखण्ड शिला को काटकर बनाया गया है। द्वार के ऊपरी भाग में लक्ष्मी की पद्मासन मूर्ति का दोनों ओर से हाथी अभिषेक कर रहे हैं । दरवाजे की दायीं ओर बाहुबली और बायीं ओर भरत की मूर्तियां हैं जो दण्डनायक भरतेश्वर द्वारा शक संवत् 1052 के आसपास प्रतिष्ठित की गई थीं। सिद्धरगुण्ड यह एक शिला है जिस पर अनेक लेख हैं। ऊपरी भाग की कई पंक्तियों में जैनाचार्यों के चित्र हैं, उनके नाम भी हैं । भरत-बाहुबली, उनके निन्यानवे भाई तथा ब्राह्मी और सुन्दरी की मूर्तियां भी यहां दर्शायी गई हैं। गुल्लिकायज्जि बागिलु ___ यह दूसरे द्वार का नाम है। द्वार के दाहिनी ओर एक शिला पर एक स्त्री बैठी है जिसका चित्र भी खुदा है। सम्भवतया इसे गलत नाम दे दिया गया है। लेख (क्र० 358) के अनुसार यह मल्लिसेट्टि की पुत्री का चित्र होना चाहिये। त्यागद ब्रह्मदेव स्तम्भ यह 'चागद कम्ब' भी कहलाता है। यहां दान दिया जाता था अतः त्यागद नाम पड़ा। अद्भुत शिल्प है इस स्तम्भ का। यह मानो अधर में स्थित है और इसके नीचे से रुमाल निकाला जा सकता है। स्तम्भ के एक कोने का अंश मात्र पीठिका का स्पर्श करता है। लेख क्र. 388 के अनुसार यह चामुण्डराय द्वारा स्थापित है। लेख में उनके प्रताप का वर्णन है। यह लेख पूरा नहीं मिलता। पूरा होता तो बहुत से तथ्य प्रमाणित रूप से विदित हो जाते। शायद हेग्गडे कण्न ने अपना छोटा-सा लेख (क्र. 389) लिखाने के लिए चामुण्डराय का लेख घिसवा डाला। यह तथ्य बड़ा दारुण है।

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