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बाहुबली मूर्तियों की परम्परा
आकार की यह मूर्ति मूलत: श्रवणबेलगोल की है और अब प्रिंस ऑफ वेल्स संग्रहालय, बम्बई में (क्रमांक 105) प्रदर्शित है। इसका वर्तुलाकार पादपीठ अनुपात
इससे कुछ बड़ा है और अब इससे टूट कर अलग हो गया है। स्कन्ध कुछ अधिक चौड़े हैं किन्तु शरीर का शेष भाग उचित अनुपात में है । मुख मण्डल अण्डाकार है, कपोल पुष्ट हैं और नासिका उन्नत है। ओष्ठ और भौंहें उभरी होने से अधिक आकर्षक बन पड़ी हैं। केश राशि पीछे की ओर काढ़ी गयी है किन्तु अनेक घुंघराली जटाएँ कन्धों पर लहराती दिखायी गयी हैं। लताएँ उनके पैरों से होकर हाथों तक ही पहुँची हैं । कालक्रम से यह द्वितीय मानी जा सकती है । कालक्रम से तृतीय बाहुबलि मूर्ति ऐहोल के इन्द्रसभा नामक बत्तीसवें गुहामन्दिर की अर्द्ध-निर्मित वीथि में उत्कीर्ण है। बीजापुर जिले के इस राष्ट्रकूटकालीन केन्द्र का निर्माण आठवीं नौंवी शती में हुआ था। इसी गुहा मन्दिर में नौवीं-दसवीं शती में जो विविध चित्रांकन प्रस्तुत किए गए उनमें से एक बाहुबली का भी है। बाहुबली का इस रूप में यह प्रथम और संभवत: अन्तिम चित्रांकन है ।
कर्नाटक में गोलकुण्डा के खजाना बिल्डिंग संग्राहलय में प्रदर्शित एक बाहुबली मूर्ति काले बेसाल्ट पाषण की है । 1.73 मीटर ऊँची यह मूर्ति कदाचित् दसवीं शती की है ।
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पत्तनचेरुवु से प्राप्त और राज्य संग्राहलय हैदराबाद में प्रदर्शित एक बाहुबली मूर्ति राष्ट्रकूट कला का अच्छा उदाहरण है । इसमें लताएँ कन्धों से भी ऊपर मस्तक के दोनों ओर पहुँच गयीं हैं। दोनों ओर अंकित एक-एक लघु युवती - आकृति का एक हाथ लता को अलग कर रहा हैं और दूसरा कटि तक अवलम्बित मुद्रा में है । बारहवीं शती की यह मूर्ति कई दृष्टियों से उल्लेखनीय है । श्रीवत्स लांछन होने से यह उत्तर और दक्षिण की श्रृंखला जोड़ती है; ऊपर स्वस्तिक और कमलाकृति प्रभामण्डल है जो अन्य बाहुबलि मूर्तियों में प्राय अप्राप्य है। कटि की त्रिवलि ने समूची मूर्ति के अनुपात को सन्तुलित किया है।
मी तालुके में ही एक गाँव है ऐहोल, जिसके पास गुफाएँ हैं । गुफाओं में पूर्व की ओर मेघुटी नामक जैन मन्दिर है । इसके पास की गुफा में बाहुबली की 7 फुट ऊँची मूर्ति उत्कीर्ण है ।
दक्षिण में ही दौलताबाद से लगभग 16 मील दूर एलोरा की गुफाएँ हैं। इन में पांच जैन- गुफाएं हैं। इनमें एक इन्द्रसभा नामक दोतल्ला सभागृह है । इसकी बाहरी दक्षिणी दीवार पर बाहुबली की एक मूर्ति उत्कीर्ण है ।
उत्तर भारत की विशिष्ट बाहुबली मूर्तियाँ
बहुत समय तक कला-विवेचकों में यह धारणा प्रचलित थी कि बाहुबली की मूर्तियाँ दक्षिण भारत में ही प्रचलित हैं। उत्तर भारत में इनके उदाहरण अत्यन्त