Book Title: Antardvando ke par
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 165
________________ परिशिष्ट 119 29 बलदेवाचार्य ___अ० 622 समाधिमरण । पद्मनन्दि मुनि समाधिमरण। पुष्पनन्दि - 95 " समाधिमरण। विशोक भट्टारक " कोलातूर संघ । समाधिमरण। 33 इन्द्रनन्दि आचार्य 110 समाधिमरण । पुष्पसेनाचार्य 118 नविलूर संघ । समाधिमरण। श्रीदेवाचार्य " समाधिमरण। - मल्लिसेन भट्टारक 5 अ० 9वीं समाधिमरण। इनके एक शिष्य ने तीर्थ-वन्दना की। शताब्दी कुमारनंदिभट्टारक 168 " समाधिमरण । - अजितसेनभट्टारक ____64 अ० 896 लेख क्र० 64 में कहा गया है कि गङ्गनरेश मारसिंह ने इनके निकट " मुनि 150 समाधिमरण किया। लेख क्र. 150 के अनुसार इनके शिष्य चामुण्डराय के पुत्र जिनदेवन ने जिन-मंदिर बनवाया। 39 मलधारिदेव नयनन्दि विमुक्त 240 अ० 970 नयनन्दि विमुक्त के एक शिष्य ने तीर्थ-वन्दना की। पद्मनन्दिदेव (?) अ० 1000 महामण्डलेश्वर त्रिभुवनमल्ल कोङ्गाल्व ने कुछ भूमि का दान किया। प्रभाचन्द्रसिद्धान्त 500 अ० 1001 चैत्यालय के हेतु कोङ्गाल्व नरेश अदटरादित्य द्वारा भूमिदान । देव उपाधि-उभयसिद्धान्तरत्नाकर। 42 गण्डविमुक्तदेव (?) मूलसंघ, कानूर गण, तगरिल गच्छ। कोङ्गाल्वनरेश राजेन्द्र पृथुवी द्वारा वसदि-निर्माण और भूमिदान। 43 देवनन्दि भट्टारक - 520 अ0 1000 - 40 129

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