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स्मारक चतुष्टय
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चौकोर घेरे के भीतर चट्टान में एक कुण्ड है। कुण्ड के भीतर स्तम्भ है जिस पर लेख (क्र. 211) में लिखा है -"मानभ आनन्द-संवच्छदल्लि कट्टिसिब दोगेयु अर्थात् मानव ने आनन्द संवत्सर (शक संवत् 1116) में इसे बनवाया। लक्कि दोणे ___ इसका अर्थ है लक्कि नामक महिला द्वारा निर्मित कुण्ड । कुण्ड से पश्चिम की ओर एक चट्टान है जिस पर 31 छोटे-छोटे लेख (क्रमांक 219 से 249) हैं जिनमें यात्रियों, आचार्यों, कवियों तथा राजपुरुषों के नाम अंकित हैं।
भद्रबाहु गुफा
अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु ने यहां शरीर त्याग किया था। यहां पर उनके चरण अंकित हैं। एक लेख (क्र. 251) यहां पाया गया था, किन्तु अब वह यहाँ नहीं है । कहा जाता है कि सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य अपनी मुनि-अवस्था में यहीं पर तपश्चरण करते हुए आचार्य भद्रबाहु की उनके अन्तिम समय तक सेवा-सुश्रुषा करते रहे। यह भी मान्यता है कि लगातार 48 दिनों तक इन चरणों की पूजा करने से भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है।
चामुण्डराय को शिला
चन्द्रगिरि के नीचे एक चट्टान इस नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है, चामुण्डराय ने इसी शिला पर खड़े होकर विन्ध्यगिरि पर सोने का बाण छोड़ा था, जिसके फलस्वरूप विश्ववन्ध गोम्मटेश्वर मूर्ति का ऊपरी भाग प्रकट हुआ था। शिला पर कई जैन गुरुओं के आकार और उनके नाम भी उत्कीर्ण हैं।
2. विन्ध्यगिरि विन्ध्यगिरि को 'दोड्ड बेट्ट' (बड़ी पहाड़ी) या 'इन्द्रगिरि' भी कहते हैं। यह समुद्रतल से 3347 फुट और नीचे मैदान से 470 फुट ऊँची है। शिखर पर पहुंचने के लिए 650 सीढ़ियां पत्थरों को काटकर बनाई गई हैं। ऊपर समतल चौक एक घेरे से घिरा है। घेरे में बीच-बीच में तलघर हैं जिनमें जिन-प्रतिमाएं विराजमान हैं। घेरे के चारों ओर कुछ दूरी पर भारी दीवार है जो कहीं-कहीं प्राकृतिक शिलाओं से बनी है। चौक के ठीक बीचों-बीच गोम्मटेश्वर की विशाल खड्गासन मूर्ति है जो अपनी दिव्यता से स सारे भूभाग को अलंकृत कर रही है । गोम्मटेश्वर को इस विश्ववन्द्य प्रतिमा का वर्णन हम कर चुके हैं।
मूर्ति-विवरण एक लेख (ऋ० 336) में दिया है। यह लेख एक छोटा-सा कन्नड़ काव्य है। यह 1180 ई. के लगभग वोप्पण कवि द्वारा रचा गया है।