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अन्तद्वन्द्वों के पार
स्तम्भ है। इसके शिखर पर पूर्वमुखी ब्रह्मदेव की छोटी-सी पद्मासन मूति है। स्तम्भ की पीठिका आठ दिशाओं में आठ हाथियों पर आधारित थी। अब थोड़े से हाथी रह गये हैं। इसके चारों ओर लेख (ऋ० 64) है, जो गंगनरेश मारसिंह द्वितीय की मृत्यु (974 ई०) का स्मारक है। इससे ज्ञात होता है कि यह स्तम्भ इससे भी पहले बना होगा।
महानवमी मण्डप __नार स्तम्भों वाले दो मण्डप हैं। दोनों मण्डपों के मध्य में स्थित एक स्तम्भ के लेख (क्रमांक 73) में अंकित है कि यहां नयकीर्ति आचार्य का समाधिमरण हुआ और उनके श्रावक शिष्य नागदेव मन्त्री ने मण्डप का निर्माण करवाया।
ऐसे ही और भी अनेक मण्डप इस पर्वत पर विद्यमान हैं और उनमें लेखयुक्त स्तम्भ प्रतिष्ठित हैं।
भरतेश्वर ___ महानवमी भण्डप के पश्चिम की ओर एक भवन है। इसके समीप 9 फुट ऊंची मूर्ति है जो बाहुबली के भाई भरतेश्वर की बताई जाती है। एक भारी चट्टान में यह मूर्ति घुटनों तक बनाई जाकर अपूर्ण छोड़ दी गई है। वर्तमान अवस्था में यह समभंग मुद्रा में अवस्थित है। संभवतः इसे चन्द्रगिरि पहाड़ी के पश्चिमी परिसर में पड़े हए विशाल शिलाखण्ड को काटकर बनाया गया है । सम्बन्धित शिलालेख का कुछ भाग पढ़ा गया, जिससे अनुमान होता है कि इसे गुरु अरिष्टनेमि ने बनवाया था।
इरुवे ब्रह्मदेव मन्दिर
सारी पहाड़ी पर मेरे से बाहर केवल यही एक मन्दिर है। इसमें ब्रह्मदेव की मति है । इस मन्दिर के सामने एक बृहत् चट्टान है जिस पर जिन-प्रतिमाएँ, हाथी, स्तम्भ खुदे हुए हैं। खोदने वालों के नाम भी अंकित हैं। मन्दिर के दरवाजे पर लेख (क्र० 186) है जिसके अनुसार इस मन्दिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में हुमा था। ___ एक विशेष अतिशय इस मन्दिर का यह प्रचलित है कि लोग यहां आकर दही द्वारा अभिषेक की मनौती पूरी करते हैं तो उनके घर से चींटियां चली जाती हैं। कञ्चिन दोणे
'कञ्चिन' का अर्थ है 'कांसा', जिस धातु से घण्टा आदि बनाये जाते हैं और 'दोण' का अर्थ है-कुण्ड। किन्तु इसका आशय पूरी तरह स्पष्ट नहीं होता है । यहाँ