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अन्तद्वंन्द्रों के पार __ स्तम्भ की पीठिका के दक्षिण बाजू पर दो मूर्तियां खुदी हैं । एक मूर्ति, जिसके दोनों ओर चंवरवाही खड़े हुए हैं, चामुण्डराय की है और सामने वाली मूर्ति उनके गुरु नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रदर्ती की कही जाती है।
चेन्नग्ण बसदि
इसमें चन्द्रप्रभु की ढाई फुट ऊँची मूर्ति है । बसदि के सामने मानस्तम्भ है। लेख क्र० 540 के अनुसार इसे चेन्नण्ण और उसकी धर्मपत्नी ने शक संवत् 1596 में बनवाया था। इस दम्पती की मूर्तियाँ भी उत्कीर्ण हैं। यह बसदि त्यागद स्तम्भ की पश्चिम दिशा में है।
मोदेगल बसवि
इसे त्रिकूट बसदि भी कहते हैं, क्योंकि इसमें तीन गर्भगृह हैं। मन्दिर ऊँची सतह पर है, सीढ़ियों से जाना पड़ता है। ओदेगल से तात्पर्य है कि पाषाणों का आधार देकर इस बसदि की दीवारों को मजबूत किया गया है। तीन गुफाओं में पद्मासन तीन मूर्तियां--तीर्थकर नेमिनाथ, आदिनाथ और शान्तिनाथ की हैं। पश्चिम की ओर चट्टान पर नागरी अक्षरों में 27 लेख (क्र. 391-417) उत्कीर्ण हैं जिसमें अधिकतर तीर्थयात्रियों के नाम हैं । बीच में पत्थर का कमल निर्मित है। चौबीस तीर्थकर बसदि
यह छोटा-सा देवालय है । यहां डेढ़ फुट ऊँचे एक पाषाण पर चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियां उत्कीर्ण हैं । नीचे एक पंक्ति में तीन बड़ी मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। लेख क्र० 422 के अनुसार चौबीसी की स्थापना चारुकीति पण्डित धर्मचन्द्र आदि द्वारा शक संवत् 1570 में कराई गई थी। ब्रह्मदेव मन्दिर
विन्ध्यगिरि की नीचे की सीढ़ियों के पास एक छोटा-सा मन्दिर है। इसमें सिन्दूर से रंगा हुआ एक पाषाण है जिसको लोग 'जारुगुप्पे अप्प' या 'ब्रह्म' कहते हैं। लेख क्र. 439 के अनुसार शक संवत् 1600 में इसका निर्माण हिरिसालि निवासी गिरिगौड के छोटे भाई रंगय्य ने कराया था।
3. नगर-स्मारक
भण्डारि बसदि
यह नगर का सबसे बड़ा मन्दिर है। इसका आकार 266x58 फुट है।