Book Title: Antardvando ke par
Author(s): Lakshmichandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 145
________________ स्मारक चतुष्टय 107 कल्याणी सरोवर यह नगर के बीच में है। इसके चारों ओर सीढ़ियां और शिखरबद्ध दीवार है। एक सभा-मण्डप है। उसके एक स्तम्भ पर लेख (ऋ० 501) है जिसके अनुसार इस सरोवर को चिक्कदेव राजेन्द्र ने बनवाया था। यह वही सरोवर है जिसके नाम पर बेल्गोल का नामकरण हुआ। एक समय सरोवर के चारों ओर प्राकृतिक सुषमा का विस्तार था। किन्हीं अर्थों में आज भी है। अब नयी निर्माण-पद्धतियों द्वारा इस सरोवर का परिष्कार किया गया है। जक्कि कट्टे यह दूसरा सरोवर है। पास की दो चट्टानों पर जैन मूर्तियों के लेख (क्र. 503-504) से ज्ञात होता है कि वोप्पदेव की माता, गंगराज के बड़े भाई की पत्नी, शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव की शिष्या जक्किमब्वे ने इन मूर्तियों और इस सरोवर का निर्माण कराया था। चेन्नण कुण्ड चेन्नण्ण कुण्ड के निर्माता वही चेन्नण्ण हैं जिनकी कृतियों का उल्लेख अनेक शिलालेखों में है। लेख क्र०.480 से ज्ञात होता है कि इस कुण्ड का निर्माण शक संवत् 1595 के आस-पास हुआ था। 4. आसपास के ग्राम जिननाथपुर : शान्तिनाथ बसदि नगर से उत्तर की ओर यह एक मील दूरी पर है । लेख क्र० 538 के अनुसार होयसल नरेश विष्णुवर्धन के सेनापति गंगराज ने शक संवत् 1040 के आसपास इसे बसाया था। मैसूर राज्य के समस्त मन्दिरों में सबसे अधिक आभूषित है यह बसदि, और है यह होयसल शिल्पकारी का सबसे सुन्दर नमूना। इसमें शान्तिनाथ भगवान की साढ़े पांच फुट ऊंची भव्य एवं दर्शनीय मूर्ति है। यह प्रभावली से और दोनों ओर चमरवाहियों से सुसज्जित है। नवरंग के चार स्तम्भ मूंगे की कारीगरी के नमूने हैं। सुन्दर नवछत है तथा बाहरी दीवारी पर तीर्थकर, यक्ष, यक्षी, ब्रह्म, सरस्वती, मन्मथ, मोहिनी, नृत्यकारिणी, गायक, वादित्रवाही आदि के चित्र हैं। इसका लेख (क्र. 526) शक संवत् 1120 (जीर्णोद्धार 1553 में) इस मन्दिर का निर्माण-काल दर्शाता है। तदनुसार इस मन्दिर को 'वसुधकबान्धव' रेचिमय्य सेनापति ने बनवाकर सागरनन्दि सिद्धान्तदेव के अधिकार में दे दिया था। रेचिमस्य

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