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श्रवणबेल्गोल के शिलालेख इतिहास और संस्कृति के संवाद-स्वर
[कर्नाटक में बनधर्म और संस्कृति का ऐतिहासिक अध्ययन करने के
लिए आए हुए चार सदस्यों का पूर्व-परिचित काल्पनिक बल]
पुराविद् : हमने जिन महत्वपूर्ण शिलालेखों का चन्द्रगिरि पर्वत पर अध्ययन
किया है उनके सम्बन्ध में चर्चा कर लेना आवश्यक है ताकि हम अपने
ज्ञान को क्रम-बद्ध लड़ी में पिरोते चलें। वाग्मी : मैंने प्रयत्न किया है कि शिलालेख जो अनेक भाषाओं में हैं प्राचीन
तमिल और कन्नड, तेलगु, मराठी और मलयालम में...... अनुगा : और, अनेक लिपियों में भी। तमिल की प्राचीन लिपि-ग्रंथ-तमिल,
कन्नडलिपि में संस्कृत भाषा और मराठी भाषा, तथा मलयालम लिपि
और नागरी लिपि में ऐसे सभी शिलालेख हम लोगों ने यहां देखे हैं। . पुराविद : लिपि के आधार पर लेखों का विश्लेषण करके देखा गया है। कन्नड,
मलयालम, तमिल व तेलगु लिपि के लेखों को छोड़कर 36 लेखों की लिपि देवनागरी है और 17 लेखों की महाजनी या मुण्डी लिपि है जिसमें मात्राएं नहीं होती। केवल अ और इ की मात्रामों से काम चलाया जाता है और ज-स, ट-ड, ड-ण तथा ब-भ में कोई भेद व्यक्त
नहीं होता। यह व्यापारियों की कामचलाऊ लिपि होती है। माग्मी : कुछ लेखों में पंजाब प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों की टीकरी लिपि भी पाई
जाती है। भूतन : इसका अर्थ यह है कि श्रवणबेल्गोल सारे भारत का पवित्र तीर्थ था,
और जैन संस्कृति भारत-व्यापी थी। वाग्मीजी ने बहुत परिश्रमपूर्वक इन शिलालेखों को पड़ा है और अनुगा, फोटो द्वारा उनकी प्रतिकृति ले ली, इससे अध्ययन में सुविधा हो गई।