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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
अर्थात् अदेयर राष्ट्र के चित्तूर स्थान के मौनि गुरु की शिष्या नागमति गन्तियर् (साध्वी) ने तीन मास के व्रत के पश्चात् शरीरान्त किया। सबसे आश्चर्य का शिलालेख क्रमांक 25 (पाश्र्वनाथ बसदि के दक्षिणपश्चिम में) है
"बाला मेल्सिखि मेले सर्पद महादन्तापदुल सल्ववोल् सालाम्बाल-तपोगविन्तु नब्दों नूरेण्ट-संवत्सरं केलोपिन्कटवप्रलिमडनम्मा कलन्तूरन
बाले पेग्डैरवं समाषि-नेरेदोन नोन्तेखिदौरं सिद्धियान्" -बाले ! कलन्तूर के उन महामुनि की बात सुनो जिन्होंने पहले पवित्र कटवप्र पर्वत पर आरोहण किया, और फिर 108 वर्षों तक घोर तपस्यारत रहे—जो इतनी कठिन थी कि मानो तलवार की तेज धार पर चल रहे हों, या अग्नि की शिखा पर या महाविषधर नाग के फण पर चल रहे हों। इन महान् गुरु ने व्रत धारण किए, समाधि में
स्थित हुए और सिद्धपद प्राप्त किया। श्रुतज्ञ : समाधिमरण के प्रसंग में यह बात बहुत महत्त्व की है कि यदि हम श्रवण
बेल्गोल के लगभग 573 शिलालेखों की विषय-वस्तु का विश्लेषण करें तो उनमें 100 लेख मुनियों, आयिकाओं और श्रावक-श्राविकाओं के समाधिमरण से सम्बन्धित हैं। ये शिलालेख इतने पुराने हैं कि चन्द्रगिरि के 54 लेखों में से 41 जो सातवीं शताब्दी के हैं, और 20 में से 10 जो आठवीं शताब्दी के हैं, सब समाधिमरण और संन्यास की
प्रभावना से सम्बद्ध हैं। अनुगा : पुराविद्जी, आपने इतिहास की दृष्टि से जो लेख पढ़े हैं वे किस प्रकार
पुराविद : अच्छा हुआ कि मैंने यह विश्लेषण कर लिया था अन्यथा संख्या न बता
पाता। 40 लेख ऐसे हैं जिनमें योद्धाओं की स्तुति है, या आचार्यों की प्रशस्ति है, या स्थान विशेष के नामों का उल्लेख है। 160 लेख संघों और यात्रियों की याद के हैं जिन्होंने चन्द्रगिरि और विन्ध्यगिरि पर्वतों की तीर्थयात्रा की । यह भी बता दूं कि 107 लेख दक्षिण से आए
हुए संघों या यात्रियों के हैं और 53 उत्तर भारत के। अनुगा : फिर एक प्रमाण सामने आया कि श्रवणबेलगोल सारे भारत की
सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक है। वाग्मी : अन्तरंग महानता और पावन प्रयत्नों का परिचय मैं दे दूं? पुराविद् : आपका अभिप्राय ? बाग्मी : यह कि शेष 200 शिलालेखों की विषयवस्तु में 100 शिलालेख मन्दिरों