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श्रवणबेल्गोल के शिलालेख...
उत्तरकालीन इतिहास पुराविद् : उत्तरकालीन इतिहास की दृष्टि से श्रवणबेल्गोल के शिलालेखों का
बहुत महत्त्व है। यदि सबसे पहले किसी शिलालेख पर ध्यान जाता है
तो.. लेकिन, श्रुतज्ञजी आप बतायेंधुता : राज्य की रक्षा, युद्धों में शत्रुओं का मान-मर्दन, उनकी पराजय,
शूरवीरता के उच्चतम मानदण्ड और इतने सब विजयोल्लास के उपरान्त धर्माचार्य की शरण में जाकर समाधिमरण द्वारा समताभाव से शरीर-त्याग का सबसे प्रभावकारी उदाहरण श्रवणबेल्गोल के समीप कांचिनदोणे के कूगे ब्रह्मदेव स्तम्भ के दसवीं शताब्दी के शिलालेख (क्र०64) में है जिसमें गंगवंश के राजा मारसिंह का वर्णन है। शिलालेख प्रारम्भ होता है मंत्री के संदर्भ से कि मासिंह ने : • राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराज तृतीय के लिए गुर्जर देश को विजय किया, • कृष्णराज के विपक्षी अल्ल का मद चूर किया, • विन्ध्यपर्वत की तराई में रहने वाले किरातों के समूहों को जीता, ० मान्यखेट में कृष्णराज की सेना की रक्षा की, ० इन्द्रराज चतुर्थ का अभिषेक कराया, • पातालमल्ल के छोटे भाई वज्जल को पराजित किया, ० वनवासी-नरेश की धन-सम्पत्ति का हरण किया, • माटूरवंश को पराभूत किया, ० नोलम्ब कुल के नरेशों का सर्वनाश किया, ० काडुवट्टि जिस दुर्ग को नहीं जीत सका था, उस उच्चङ्गि दुर्ग को
स्वाधीन किया, ० शबराधिपति नरग का संहार किया, ० चालुक्य नरेश राजादित्य को जीता, ० तापी-तट, मान्यखेट, गोनूर, उच्चङ्गि, बनवासि व पाभसे के युद्ध
जीते; तथा चेर, चोल, पाण्ड्य और पल्लव नरेशों को परास्त किया। इस लेख की अन्तिम पंक्तियों में राजा के द्वारा 'धर्म' पुरुषार्थ की साधना का उल्लेख इन शब्दों में मिलता है :
..."पलवेडे-गलोलं बसदिगुलं मानस्तंभंगलुवं माडिसिदं । मंगलं । धर्ममंगलं नमस्यं नडयिसिबलियमोन्दुवर्ष राज्यमं पत्तुविट्ट बंकापुरदोल् अजितसेनभट्टारकर श्रीपादसन्निधियोल् आराधनाविधियि मूरखे