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श्रवणबेल्गोल के शिलालेख...
वाग्गी : इस वंश के राजपुरुष और महिलाएं शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य थे।
सारा परिवार धर्म-रत था। गंगराज की भार्या लक्ष्मी ने अपने भाई बूच और बहिन देमेति की मृत्यु की स्मृति में शिलालेख लिखवाया, जैनाचार्य मेघचन्द्र की स्मृति में लेख उत्कीर्ण करवाया। इसी महिला ने एरडुकट्टे बसादि का निर्माण कराया। गंगराज की माता पोचब्बे की स्मृति में कत्तले बसदि नामक मन्दिर का निर्माण करवाया, शासन बसदि (इन्द्रकुलगृह) बनवाई। गंगराज ने अपनी बड़ी भाभी जक्कमब्बे (बम्मदेव की भार्या) की स्मृति में उसके सत्कार्यों का उल्लेख करने वाला लेख उत्कीर्ण करवाया । गोम्मटेश्वर का परकोटा
बनवाया । प्रत्येक कार्य का उल्लेख अलग-अलग शिलालेखों में है। अनुगा : किसी शिलालेख की कोई मनोरंजक बात? वाग्मी : श्रुतज्ञजी, बतायें, या पुराविद्जी ! पुराविद् : फिर तो सन् 982 के शिलालेख क्रमांक 163 की बात करनी होगी,
जिसमें राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र चतुर्थ की दक्षता का वर्णन है। अनुगा : युद्ध में वीरता का? पुराविद् : नहीं, 'पोलो' के खेल का-उसे पोलो ही कहना चाहिये । लिखा है :
"श्रीगे विजयक्के विद्देगे। चागक्कटिंगे जसके पेम्पिगि नित
गिरमिदेन्दु कन्दुकदागमदोले नेगल्गुमलते बीरर बीर । ओलगं दक्षिण सुकरदुष्करमं पोरगण सुकरदुष्करभेदमं ओलगे वामदविषममनल्लिय विषमदुष्करम निन्नदर पोरगग्गलिके येनिपति विषममनदरतिविषम दुष्करमेम्ब दुष्कर्म
एलेयोलोने चारिसल्बल्लंनाल्कुप्रकरणमुमनिन्द्रिराजं ।"... अर्थात् यह वीरों में वीर इन्द्रराज कन्दुक (गेंद) का खेल खेलता है, क्योंकि वह मानता है कि इस क्रीड़ा में श्रीवृद्धि है, विजय है, विद्याबुद्धि है, उदारता है, वीरता है, यश है, महानता है—सभी बातें हैं। संसार में इन्द्रराज ही एक ऐसा व्यक्ति है जो सभी प्रकार की कन्दुककला में दक्ष है। सुकर, दुष्कर, विषम और विषम-दुष्कर गति की गेंद वह चारों ओर फेंक सकता है। अन्दर, बाहर, दायें, बायें। चारों ओर फेंके जाने पर 338 चक्र बनते हैं। गेंद पर आघात लगाने के तो एक करोड़ तरीके हैं. और गेंद पर बल्ले का आघात इस तरह लगे कि ठीक निशाने पर जाये-न आगे बढ़ने पाए, न ओछी रह जाये । 'गेंद चाहे काली मिर्च से भी छोटी हो, स्टिक चार अंगुल से भी