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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
पादतल तक पहुँच गया। चामुण्डराय के लिए यह पहले से भी अधिक आश्चर्य की बात थी । लेकिन क्षणान्तर में उनकी स्वयं ही समझ में आ गया कि बात क्या हुई । बुढ़िया के रूप में शायद कोई देवी है जो कहना चाहती है :
"चामुण्डराय, इतनी बड़ी मूर्ति का आविष्कार, उसका निर्माण तुमने अपने पराक्रम से किया। दूध के सहस्रों कलशों से प्रक्षालन किया है। अपने यश की कामना तुम्हारे मन में है । किन्तु भक्ति के इस सारे वातावरण में तुम्हारे मन में यह अहंकार आ गया है कि तुमने कितना बड़ा काम किया है! अतः यह सब निष्फल है। भक्ति की सफलता के लिए तो बुढ़िया की यह छोटी सी फल की कलशी पर्याप्त थी । जिसकी दृष्टि भगवान बाहुबली के चरणों की ओर है उस गुल्लिका का दूध तो चरणों तक पहुँचना ही था। भगवान बाहुबली के मस्तकाभिषेक का पुण्य फल सदा से यही रहा है कि मन में संयम की भावना आये, मंद और अहंकार गलित हों, और आडम्बररहित एकाग्रता में भक्ति सार्थक हो ! अहंकार रूपी शल्य का उच्छेद किये बिना स्वयं बाहुबली को भी केवलज्ञान प्राप्त नहीं हो सका ।"
गोम्मटेश्वर मूर्ति का माप
सन् 1871 में मस्तकाभिषक के समय मंसूर शासन की ओर से मूर्ति का ठीक-ठाक नाप लिया गया था। वह इस प्रकार है
चरण से कर्ज के अधोभाग तक
कर्ण के अधोभाग से मस्तक तक (लगभग)
चरण की लम्बाई
चरण के अग्रभाग की चौड़ाई
चरण का अंगुष्ठ
पादपृष्ठ की ऊपर की गोलाई
जंघा की अर्ध गोलाई
नितम्ब से कर्ण तक
पृष्ठ- अस्थि के अधोभाग से कर्ण तक
नाभि के नीचे ऊपर की चौड़ाई कटि की चौड़ाई
और टेहनी से कर्ण तक
बाहुमूल से कणं तक वक्षस्थल की चौड़ाई
ग्रीवा के अधोभाग से कर्ण तक
फुट
50
6
9
4
2
6
10
24
20
13
10
17
7
26
2
इंच
0
6
0
6
9
4
0
6
0
0
0
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