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श्रवणबेलगोल में बाहुबली की मूर्ति-प्रतिष्ठापना
59 चामुण्डराय ने धर्म-पताका को सदा ऊँचा रखा।
चामुण्डराय ने अपनी भक्ति, धर्मभावना, सत्यनिष्ठा, जैनधर्म के प्रति अट्ट श्रद्धान और जिनशासन-प्रभावना के कारण जो उपाधियाँ प्राप्त की, वे हैं : सम्यक्त्वरत्नाकर, शौचाभरण, गुणरत्नभूषण, देवराज।
चामुण्डराय के गुरु नेमिचन्द्र परम तपस्वी और अगाध ज्ञानी थे। उनकी कृपा से ही चामुण्डराय को गुल्किकायज्जी के दर्शन हुए। गोम्मटेश्वर की प्रतिमा का अभिषेक सम्पन्न हुआ और चामुण्डराय अहंकार के कषाय-भाव से बच गये। यह कथा आगे दी है। ___ उत्कट शौर्य के साथ मृदुता और निरभिमानता के समागम का पाठ गुरु नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने चामुण्डराय को शास्त्रज्ञान के साथ-साथ पढ़ाया।
नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती एक दिन जब कर्मसिद्धान्त के प्राचीन ग्रन्थ धवला का अध्ययन कर रहे थे तो चामुण्डराय गुरु के दर्शनों को उनके पास पहुँचे। गुरु ने चामुण्डराय को देखते ही उस ग्रन्थ को बन्द करके एक ओर रख दिया। चामुण्डराय को शास्त्रज्ञान में गहरी रुचि थी। उन्होंने गुरु से पूछा
"मुनिवर ! आपकप्त शास्त्र का अध्ययन कर रहे थे ? आपने उसे उठाकर रख दिया। कृपा करके मुझे बतायें इसका विषय क्या है।" ___गुरु ने कहा, "चामुण्डराय, यह इतना कठिन विषय है, इसका इतना विस्तार है कि तुम्हारी समझ में नहीं आयेगा। अभी तुम इस ज्ञान के अधिकारी नहीं .
चाशुण्डराय ने गुरु से प्रार्थना की कि सिद्धान्त के गहन विषयों की उसे शिक्षा दें। उसके लिए सिद्धान्त-विषयों का सार इस प्रकार लिख दें कि विषय मंक्षेप में समझ में आ जाये । गुरु ने चामुण्डराय के लिए 'पंचसंग्रह' नाम का ग्रन्थ प्राकृत भाषा में रच दिया। वह षट्खण्डागम के छह खण्डों का संग्रह है, उनका सार दिया गया है। गुरु की अपने इस शिष्य गोम्मट पर इतनी कृपा थी कि उक्त ग्रन्थ का नाम ही उन्होंने 'गोम्मटसार' रख दिया। ग्रन्थ की अनेक गाथाओं में गोम्मट शब्द का प्रयोग किया, जहां उसके अर्थ का संकेत गोम्मटराय अर्थात् चामुण्डराय की ओर है
गोम्मटसंगहसुत्तं, गोम्मटसिहरुवरि गोम्मटजिणो य। गोम्मटरायविणिम्मिय, दक्खिणकुक्कुटजिणो जयउ॥
कर्मकाण्ड, 968 चामुण्डराय स्वयं शास्त्रज्ञानी हो गये, उनके अपने रचे ग्रन्थों के नाम भी प्रचलित हैं : (1) वीरमातण्डी-गोम्मटसार की कन्नड में टीका जो अभी तक अनुप
लब्ध है । इस प्रकार की एक टीका केशव वर्णी द्वारा भी रची गई है।