________________
60
अन्तर्द्वन्द्वों के पार
( 2 ) चारित्रसार |
( 3 ) त्रिशष्ठिशलाकापुरुषचरित ( 63 महापुरुषों की जीवन-गाथा जिसमें 24 तीर्थंकर भी सम्मिलित हैं ।) कन्नड गद्य का यह प्राचीन नमूना है । कन्नड भाषा को आधुनिक आधार देने वाले साहित्यकार चामुण्डराय हैं ।
गोम्मटेश्वर की मूर्ति निर्माण की कथा
• भगवान बाहुबली की मूर्ति के निर्माण की कथा अत्यन्त चमत्कारी है । कहते हैं कि चामुण्डराय की माता कालला देवी ने मुनियों से सुन रखा था कि उत्तर भारत में तक्षशिला के समीप पोदनपुर में भगवान बाहुबली की विशाल मूर्ति है, जिसके पवित्र दर्शन आत्मा को परम शान्ति देते हैं । किन्तु उस मूर्ति के दर्शन बड़े भाग्य से होते हैं । न मालूम माता के हृदय में क्या भावना हुई कि उन्होंने यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह पोदनपुर की उस मूर्ति का दर्शन अवश्य करेंगी। उन्होंने अपने पुत्र चामुण्डराय और पुत्रवधू अजिता देवी के समक्ष यह भावना प्रकट की । आज्ञाकारी पुत्र ने तत्काल निर्णय किया कि वह जल्दी ही प्रबन्ध करेंगे कि माता को पोदनपुर ले जायें और भगवान बाहुबली की उस अद्भुत विशाल प्रतिमा का दर्शन करायें, स्वयं भी कृतकृत्य हो । तत्काल ही यात्रा का प्रबन्ध करना इसलिए और भी आवश्यक हो गया कि माता की प्रतिज्ञा थी कि जब तक वे उस मूर्ति के दर्शन नहीं करेंगी तब तक दूध का आहार ग्रहण नहीं करेंगी ।
भक्ति भाव से गद्गद माता, पुत्र और पुत्रवधू भगवान बाहुबली की यात्रा के लिए निकल पड़े। साथ में गुरु आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचवर्ती थे । अपनी राजधानी तलक्काड से चलकर कई दिन की यात्रा के उपरान्त श्रवणबेलगोल के स्थान पर पहुँचे और वहाँ विश्राम किया । वहीं एकाएक रात को चामुण्डराय को स्वप्न हुआ । स्वप्न में कूष्माण्डिनी देवी ने, जो बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की शासन- देवी हैं, दर्शन दिया और कहा
"व्यर्थ होगी तुम्हारी पोदनपुर की यात्रा, वत्स ! क्योंकि वहाँ बाहुबली मूर्ति के दर्शन नहीं हो सकेंगे । उसे तो कुक्कुट सर्पों ने पूरी तरह से आच्छादित कर रखा है ।"
स्वप्न में ही चामुण्डराय अधीर हो गये। देवी ने उन्हें आश्वासन दिया और
कहा
"तुम्हारी मातृ-भक्ति से मैं प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें और तुम्हारी माता को यहीं बाहुबली की विशाल मूर्ति के दर्शन करवा दूंगी। ध्यानपूर्वक विधि सुनो। प्रातः सूर्योदय होते ही स्नान-ध्यान करके तुम यहाँ जिस पहाड़ी के तल में विश्राम कर रहे हो, उसके शिखर पर चढ़ो और वहाँ से सामने की बड़ी पहाड़ी के शिखर पर