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श्रवणबेलगोल में बाहुबली की मूर्ति प्रतिष्ठापना
चामुण्डराय का आध्यात्मिक रोमांच
सम्राट् भरत से लेकर सम्राट् चन्द्रगुप्त तक के प्राचीन इतिहास को भगवान आदिनाथ के धर्मचक्र की जो जय-यात्रा निरन्तरता प्रदान करती है, उसके गमनचिह्नों की लीक श्रवणबेलगोल की चन्द्रगिरि पहाड़ी के शिखर तक पहुँची । वहाँ चन्द्रगिरि के सामने ही हैं विन्ध्यगिरि । लगभग तेरह शताब्दियों बाद कर्णाटक के परम तेजस्वी राज - पुरुष महामात्य चामुण्डराय ने विन्ध्यगिरि को विश्व का धर्मतीर्थ बना दिया - भगवान बाहुबली की विशाल और अनुपम मूर्ति की प्रतिष्ठापना द्वारा ।
नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती कृत 'गोम्मटसार जीवकाण्ड' की मन्दप्रबोधिनी टीका की उत्थानिका में उल्लेख है और इतिहास साक्षी है कि चामुण्डराय ने अपनी वीरता और प्रतिपक्षी नरेशों से सफलता पूर्वक लोहा लेने के कारण अनेक उपाधियाँ प्राप्त कीं। उनमें से तीन का उल्लेख दुर्गों पर चढ़ाई करके शत्रु को समूल उखाड़ फेंकने के यश से सम्बन्धित है : 'रणरङ्गसिंह', 'वीर-कुल-कालदण्ड' तथा 'भुज - विक्रम' ।
युद्ध के मैदान में रणकौशल दिखाकर नोलम्ब नरेश को पराजित करके 'वीरमार्तण्ड' की उपाधि प्राप्त की ।
पराक्रमी शत्रु बज्जल को खेड़क-युद्ध में हराकर 'समर - धुरन्धर' की पदवी अति की । इसी प्रकार 'समर - परशुराम', प्रतिपक्ष - राक्षस', 'भटमारि', असहायपराक्रम', आदि अनेक उपाधियों की पृष्ठभूमि में चामुण्डराय के पराक्रम, शौर्य, रणनीति और मित्र-नरेशों की तत्पर सहायता की कथा गुम्फित है । महाबलय्य का यह पुत्र अपने वंश की परम्परा की कीर्ति को चार चाँद लगा गया ।
लंबो, चालुक्यों और बज्जलों की लोभ-लालसा की दृष्टि जैन धर्मावलम्बी गंग-नरेशों के राज्य पर सदा लगी रहती थी । यह चामुण्डराय के शौर्य और रण-कौशल का प्रताप था कि विरोधियों को बारबार पराजय सहनी पड़ी ।