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संस्कृति के शिलापट पर
वाग्पीजी, देखिये इसे। वाग्मी : (पढ़ते हैं)
जितम्भगवता श्रीमद्-धर्म-तीर्थ-विधायिना।
बर्द्धमानेन सम्प्राप्त-सिद्धि-सौख्यामृतात्मना। श्रुतज्ञ : अर्थात् "जो श्रीमान् धर्म-तीर्थ के विधायक हैं और जिनकी आत्मा ने
सिद्धि-सौख्य के अमृत को प्राप्त कर लिया है ऐसे भगवान वर्धमान
की जय।" पुराविद् : वाग्मीजी, जब आप प्रारम्भ के अंश पर आ ही गये तो आगे का वह
गद्य भाग भी पढ़ दीजिये जिसमें भगवान महावीर के उपरान्त उनके
गणधर-शिष्यों की परम्परा का उल्लेख है। वाग्मी :: भगवान महावीर को शिष्य परम्परा गौतम गणधर से भद्र बाहु स्वामी
तक क्रमबद्ध रूप में यहाँ दी गई है । इसे पढ़े देता हूँ, किन्तु जिनके शिष्यों की पट्टावली यहाँ दी गई है उन भगवान महावीर का काव्यमय वर्णन तो पहले देख लीजिये : "अथ खलु सकल-जगद्-उदय-करणोदित-निरतिशय-गुणास्पदीभूतपरमजिन-शासन-सरस्समभिवद्धित-भव्यजन-कमलविकसन-वितिमि
रगुण-किरण-सहस्र-महोति-महावीर-सवितरि परिनिर्व ते।" श्रुतज्ञ : भगवान महावीर की उपमा यहाँ सूर्य से दी गई है-सूर्य जैसे सारे
जगत् में प्रकाशोदय को सम्पन्न करने वाला है, वैसे ही भगवान महावीर सकल जगत् का उदय, आत्मा का अभ्युदय, करने वाले हैं। जिस प्रकार सूर्य कमलों को विकसित करता है, उसी प्रकार भगवान महावीर भव्य जनों के हृदय-कमल को विकसित कर देते हैं। कमल जिस प्रकार सरोवर में खिलते हैं, उसी प्रकार भव्यजन के मन भगवान जिनेन्द्र की वाणी के सरोवर में प्रफुल्ल रहते हैं। सूर्य जैसे अस्त होता है, उसी प्रकार गुणों की सहस्र किरणों का प्रसार करने वाले भगवान
महावीर का परिनिर्वाण होने पर... अनुगा : शिलालेख में तो आगे अनेक नाम पढ़े जा सकते हैं। पुराविद् : हाँ, यही शिलालेख का ऐतिहासिक अंश है । वाग्मीजी इसे सुनायेंगे। वाग्मी : इसमें जो लिखा है उसका सन्धि-विच्छेद करके पढ़ रहा हूँ।
'भगवत्-परम-ऋषि-गौतम-गणघर-साक्षात्-शिष्य-लोहार्य-जम्बुविष्णुदेव-अपराजित-गोवर्द्धन-भद्रबाहु-विशाख-प्रोष्ठिल-कृत्तिकार्यजयनाम-सिद्धार्थ-धतिषेण-बुद्धिल-आदि-गुरुपरम्परीण-क्रम-अभ्यागतमहापुरुष-सन्तति-समवद्योतित-अन्वय-भद्रबाहु-स्वामिना उज्जयिन्याम्...'