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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
तो उपलब्ध है ही, इस कथा का एक ऐतिहासिक आधार भी मिला है— श्रवणबेलगोल के चन्द्रगिरि पर्वत पर स्थित चन्द्रगुप्त बसदि (मन्दिर) के पाषाण - फलकों पर ! हाँ यह कथा मूर्ति-चित्रों के रूप में फलकों पर उत्कीर्ण है ।
घटनाओं का क्रम जिस रूप में उत्कीर्ण है उनका उसी क्रम से वर्णन करते हुए हम उससे सम्बन्धित फलक का क्रमांक भी कोष्ठक में देते जा रहे हैं ।
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गोवर्धनाचार्य और भद्रबाहु
श्रुतकेवली गोवर्धनाचार्य कुण्डवर्धन नगर के एक उद्यान में विराजमान हैं । एक भक्त उनकी अर्चना कर रहा है ( फलक - 1 ) । कुण्डवर्धन की प्रजा सुख-शान्तिपूर्वक रह रही है ( 2 ) । नगरी में उत्साहपूर्ण चर्चा है कि दिगम्बर मुनि गोवर्धनाचार्य पधारे हैं (3) । वरिष्ठ नागरिक उनकी अभ्यर्थना के लिए निकल पड़े ( 4 ) । पीछे-पीछे आचार्य के शिष्यों की मण्डली आ पहुँची ( 5 ) । मुनिसंघ के आगमन की चर्चा राजपुरुषों और सेवकों में भी महुँची ( 6 ) । सबने मुनिसंघ का स्वागत किया ( 7-8 ) और तब आचार्य ने नगर-जनों को धर्म चर्चा का लाभ दिया (9) । स्वागत करने वाले व्यक्ति मुनिसंघ का घेरा बनाकर अगवानी करते हुए चल पड़े ( 10 ) | मुनिसंघ उन स्वागतकर्त्ताओं के पीछे-पीछे प्रस्थान करने लगा ( 11 ) । तभी एक राजपरिवार मुनियों की अभ्यर्थना के लिए आ पहुँचा ( 12 ) । वह भक्ति से आचार्य महाराज के चरणों की पूजा करके संघ के साथ हो गया ( 13 ) । मुनिसंघ अब आगे बढ़ गया ( 14 ) । वन का अधिकारी मुनिसंघ के अचा
आगमन से विस्मित हो गया ( 15 ) । मुनिसंघ को मार्ग बताने के लिए स्वयं वनदेवता आ गये । उन्होंने वनपालक को आदेश दिया कि मार्ग के वृक्ष काटकर साफ कर दें । मार्ग में पड़ने वाले वृक्ष काटे जाने लगे ( 16 ) । वन- पालक मार्गशोधन में लग गये । आचार्य ने उनको वृक्ष काटने से रोका ( 17 ) । तब तक वनपालक ने अन्तिम पेड़ काटकर मार्ग साफ कर दिया। आचार्य का मन खिन्न हुआ ( 18 ) | गोवर्धनाचार्य एक मन्दिर के सामने ध्यानस्थ बैठ गये ( 19 ) ।
तदुपरान्त मुनिसंघ आगे बढ़ा ( 20 ) | अनेक राजपुरुष और प्रजागण उनकी अगवानी करने को आ उपस्थित हुए। ये सब कोटिपुरवासी उन साधुओं की वन्दना में मग्न हो गये ( 21 ) । कोटिपुर के राजा पद्मधर का उत्तुंग भवन शोभित था ( 22 ) । यहाँ के निवासी मुनि भक्त थे ( 23 ) । गोवर्धनाचार्य वनपालक के साथ कोटिपुर के उपान्त में पहुँचे ( 24 ) | आचार्य की शान्त मुद्रा को देखकर शिकारी लोग भी समूह में सम्मलित हो गये ( 25 ) । तभी एक दम्पती ने आकर आचार्य महाराज की अर्चना की ( 26 ) । मुनिसंघ ने आगे गमन किया ( 27 ) ओर, अगवानी करने वाले साथ-साथ चल पड़े ( 28 ) । तभी मुनिसंघ को एक मन्दिर दिखायी दिया ( 29 ) । कोटिपुर के निवासियों का दैनिक जीवन शान्तिपूर्ण था