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जैन संस्कृति की सार्वभौमिकता के संवाहक
आचार्य भद्रबाहु
राजनीति से विरत होकर अन्त में चाणक्य ने स्वयं मुनि दीक्षा ले ली- इस कथा से हम परिचित हो चुके हैं।
सम्राट चन्द्रगुप्त का क्या हुआ ? वह 25 वर्ष की आयु में सिंहासन पर बैठे। उन्होंने लगभग 44 वर्ष की आयु में अपने पुत्र बिन्दुसार का राज्याभिषेक कर दिया, और स्वयं मुनिधर्म में दीक्षित हो गये। उनके दीक्षा-गुरु थे आचार्य भद्रबाहु । __ जिस प्रकार साम्राज्य-संस्थापना के लिए चाणक्य ने बालक चन्द्रगुप्त को खोज लिया था, उसी प्रकार भद्रबाहु को खोज निकाला था उनके गुरु श्रुतकेवली गोवर्धनाचार्य ने भगवान महावीर के गणधर गौतम स्वामी की आचार्य परम्परा को अक्षुण्ण रखने के लिए, कल्याणकारी धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए।
श्रवणबेल्गोल के पाषाण-फलकों में उत्कीर्ण इतिहास भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त की कथा प्राचीन जैन शास्त्रों और पुराने अभिलेखों में
*यहां यह उल्लेखनीय है कि भद्रबाहु नाम के कई प्राचार्य हुए हैं अत: जिन भद्रबाहु आचार्य का संदर्भ हमने दिया है उनकी काल गणना अथवा पट्टावली के विषय में दिगम्बर तथा श्वेताम्बर आम्नायों की मान्यता में भेद है।
इसी से संबंधित यह तथ्य भी है कि भद्रबाह का प्राचार्यत्व-काल दोनों आम्नायों में तो भिन्न है ही, ऐतिहासिक काल-गणना के अनुसार भी अन्तर है । विद्वान शोध-खोज में अभी भी लगे हुए हैं। दिगम्बर मान्यता श्वेताम्बर मान्यता
इतिहासमम्मत मान्यता बाचार्य-काल आचार्य-काल
चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य
वी०नि० सं० 133 से 162 वी० नि० सं० 156 से 170
ई० पू० 394 से 365 . . - ई०पू० 371 से 357 ई० पू० 321 से 298 श्वेताम्बर मान्यता को प्राधार मानकर समीकरण के समीप पहुंचा जा सकता है।
__ --डा. हीरा लाल जैन की टिप्पणी के आधार पर