________________
चन्द्रगुप्त मौर्य का उदय विश्राम करने गृहपति द्वारा बताये गये कक्ष में चले गये थे।
प्रातःकाल चाणक्य उठे तो देखा, गृहपति स्नान-ध्यान करके स्वर्ण मुद्रा लेकर अभिवादन के लिए खड़े हुए हैं। चाणक्य ने सारी सामग्री को अपने दाहिने हाथ की उंगलियों से छू दिया और कहा, "यह सब देवता के चरणों में अर्पित कर दो, मैं कुछ नहीं ले सकता।" . ___ गृहपति ने उल्लास और भक्ति से नमस्कार किया। चाणक्य थोड़ी देर में तयार होकर अपनी दैनिक पूजा-उपासना से निवृत्त होकर, आहार लेकर चले गये। बालक का जन्म माता द्वारा चन्द्रमा-पान करने के उपरान्त हुआ था अतः उसका नाम चन्द्रगुप्त रखा गया। बालक मौर्य गणतन्त्र का था अतः उसकी उपाधि मौर्य
___ इस कथा का अगला चरण तब प्रारम्भ हुआ जब अपनी धुन का पक्का चाणक्य आठ-दस वर्ष बाद फिर उसी गांव में आया। एक स्थान पर बालकों को खेलता हुआ देखकर ठिठक गया, क्योंकि बालकों का दल राजा-प्रजा का खेल खेल रहा था। जो वालक राजा बना हुआ था वह इतनी सहज कुशलता से शासक का अभिनय कर रहा था कि सारे बालक उसकी आज्ञा में बंधे हुए थे। ___ नायक बालक खेल-खेल में कभी किसी लड़के को घोड़ा बनाता, किसी को हाथी और उन पर सवारी करता। मिट्टी के घरोंदे बनाकर उन्हें गांव मानकर उन पर हायी घोड़े छोड़ देता। गांवों को खेल-खेल में विजय कर लेता। अच्छा काम करने वाले साथियों को पुरस्कार देने का अभिनय करता। अकुशल योद्धाओं की प्रताड़ना करता।
चाणक्य बालक के साहस की परीक्षा लेने के लिए उसके सामने पहुँचा और बोला--."महाराज, आप इतने बड़े नरेश हैं । मुझ ब्राह्मण को भी कुछ दान में दें।" .
"क्या चाहिए है तुम्हें विप्र, बोलो, तुम्हारी इच्छा पूरी करूंगा।" "मुझे जो भी आप देना चाहें!"
"अच्छी बात है, देखो सामने गांव की इतनी गायें चर रही हैं । तुम्हें जो-जो पसन्द हों ले लो।"
"किन्तु, गाँववाले क्या मुझे ये गायें ले जाने देंगे? मैं उनकी वस्तु के अपहरण करने के अपराध में दण्डित नहीं किया जाऊँगा ?" ___ "नहीं, यह अपहरण नहीं है। राजा चन्द्रगुप्त द्वारा दिया हुआ दान है। जो कोई इसमें बाधा डालेगा, वह दण्ड का भागी होगा। तुम निःसंकोच गायें छांटकर ले जाओ। तुम दण्डित नहीं होगे।" __चाणक्य गद्गद हो गया: "इतना प्रतापी और साहसी यह बालक ! उसी गांव में जहाँ मैंने मौर्य गृहपति की पुत्री का चन्द्र-दोहद पूरा किया था।"
फिर भी पूछा, "कौन हो, वत्स तुम ?"