________________
संस्कृति के शिलापट पर इतिहास की आत्मकथा
(मानव-सभ्यता के आदिकाल की जिस पौराणिक पृष्ठभूमि का वर्णन हमने प्रारंभिक खण्ड में किया है, चक्रवर्ती सम्राट् भरत का वह युग हमें आधुनिक इतिहास की दसवीं शताब्दी के उस बिन्दु से जोड़ता है, जब दक्षिण कर्नाटक के प्रसिद्ध सेनापति चामुण्डराय ने भगवान बाहुबली की विशाल मूर्ति की स्थापना श्रवणबेल्गोल में विन्ध्यगिरि पर की। यही श्रवणबेल्गोल हमें ले जाता है भारतीय इतिहास के उस स्वर्णिम अतीत में, जब आधुनिक भारत के प्रथम सम्राट्, चन्द्रगुप्त मौर्य अपने पूज्यपाद गुरु श्रुतकेवली भद्रबाहु के शिष्य के रूप में यहाँ चन्द्रगिरि पर्वत पर तपस्या करने आये और यहीं पर गुरु-शिष्य ने समाधिमरण किया n
भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त दोनों इतिहास-पुरुष हैं। प्राचीन शास्त्रों और लोकगाथाओं में हजारों वर्ष से समाविष्ट उनके जीवन की कथा का ऐतिहासिक प्रमाण मिलता है सम्राट चन्द्रगुप्त के नाम से प्रसिद्ध चन्द्रगिरि पहाड़ी के उस प्राचीन शिलालेख में, जो लगभग छठी शताब्दी में उत्कीर्ण किया गया था, भगवान बाहुबली की मूर्ति की प्रतिष्ठा से लगभग चार सौ वर्ष पूर्व । ___ चन्द्रगिरि पर्वत का शिलालेख इतना महत्वपूर्ण है कि उसका पूरा पाठ प्रस्तुत करना, उसकी कथा का विश्लेषण करना, प्रत्येक इतिहासप्रेमी, साहित्यप्रेमी और धर्मप्रेमी व्यक्ति के लिए आवश्यक है।
इस प्रयोजन से हमने चार काल्पनिक पात्रों के एक दल को अध्ययन का साधन बना लिया है जो एक अन्वेषक दल के रूप में दक्षिण भारत की अपनी सांस्कृतिक यात्रा के उद्देश्य से श्रवणबेल्गोल की चन्द्रगिरि पहाड़ी पर आ पहुँचा है। सुविधा के लिए इन्हें कोई भी नाम दिये जा सकते हैं। किन्तु हम प्रत्येक के ज्ञान-गुण के आधार पर अलग-अलग नाम इस प्रकार देंगे :
वाग्मी : प्राचीन कन्नड़ के ज्ञाता । संस्कृत, प्राकृत के विद्वान् । पुराविद् : इतिहास और पुरातत्त्व के प्रसिद्ध विद्वान् ।