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अन्तर्द्वन्द्वों के पार
___ थोड़ा स्थिर चित्त हुआ तो उसके मन में विचार उठा-"यदि इस बालक का राजयोग इस कारण है कि इसके पूरे दांत उगे हुए हैं, तो इस लक्षण को ही क्यों न भंग कर दिया जाये ? तब राज-योग खण्डित हो जायेगा और मेरे घरपरिवार की, मेरे पुत्र के संस्कारों की रक्षा हो जायेगी।" उसने पत्नी को विधि बता दी कि क्या करना होगा। पत्नी ने बलिष्ठ शिशु के दाँत धीरे-धीरे छैनी से घिसने प्रारम्भ कर दिये । जब सब दाँत घिसे गये, तो ब्राह्मण फिर मुनि महाराज को खोजता हुआ दूर एक वन में पहुंचा। विधिवत् नमस्कार करके प्रश्न किया : ___"मुनिवर, राज-योग के लक्षणों को मैंने अपने बालक के मुंह में से समाप्त कर दिया। सब दाँत नष्ट कर दिये, अब आप मुझे निश्चिन्त कीजिये कि मेरा पुत्र राजा नहीं बन पायेगा।..."
"सुनो श्रावक", मुनि महाराज ने कहा। "दांत तुमने घिस दिये, इससे वह नष्ट तो नहीं हुए। जड़ें तो अभी यथावत् हैं। हाँ, निमित्तज्ञान अब यह अवश्य बताता है कि जिस बालक को राजा बनना था, वह स्वयं तो राजा नहीं बनेगा, किन्तु राज्य की जड़ें जमवायेगा । राजा को अपने प्रभाव में रखेगा। चणी, तुम्हारा यह पुत्र चाणक्य कहलायेगा और अपनी बुद्धि से, अपनी युक्ति से, राजनीति के कौशल से, संसार को चकित कर देगा, यशस्वी होगा।" __गुरू को श्रद्धापूर्वक नमस्कार करके ब्राह्मण घर लौट आया। अब उसके मन में यह आश्वासन था कि पुत्र यदि यशस्वी होगा तो उत्तम है। राजा तो वह स्वयं नहीं बनेगा किन्तु वह मन्त्री अवश्य बन जायेगा। ब्राह्मण लोग मन्त्री हुआ करते हैं। अच्छा तो यह भी नहीं होगा कि राज-काज के परिग्रह में इसका मन उलझे। स्वयं राजा नहीं बनेगा, बस इतनी ही रक्षा है। बालक का नाम चाणक्य पड़ गया।
धीरे-धीरे बालक बढ़ता गया। पिता को यह देखकर सन्तोष हुआ कि घर में सम्पदा नहीं बढ़ रही है। निर्धनता ने पति-पत्नी के मन को सन्तुलित बना रखा है।
पिता की सम्पदा शास्त्र-ज्ञान थी, सो उसने बालक को गुरुओं से अनेक शास्त्र पढ़ाये-धर्म, दर्शन, इतिहास, तर्क, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द आदि 14 विद्याएँ सिखायीं । बालक अद्भुत ज्ञानी हो गया । धुरन्धर विद्वान होने पर पिता ने इसका विवाह यशोमती नामक एक ब्राह्मण-कन्या से कर दिया। यशोमती अपने पति की बुद्धि और शील स्वभाव से परिचित हो गई तो प्रसन्न मन से घर गृहस्थी में लग गयी। पति के बेडौल शरीर को उसने अपनी आँखों में नया रूप दे लिया। घर में अभाव था, सो विपन्न होकर रहना सीख लिया।
यशोमती एक बार अपने भाई के विवाह के अवसर पर पिता के घर आयी। 1 हेमचन्द्राचार्य कृत जिस 'अभिधान-चिन्तामणि' में चाणक्य की यह कथा दी हुई है, उसमें
चाणक्य के आठ नाम गिनाए गए हैं-(1) वात्स्यायन, (2) मेल्लिनाग (3) कुटिल वा कौटिल्य, (4) चाणक्य, (5) द्वामिल, (6) पक्षिलस्वामी, (7) विष्णुदत्त, (8) अद्गुल ।