Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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XIX : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
सभी अंग आगम अपने वर्तमान स्वरूप में गणधरों की रचना है और उनमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन, परिवर्धन, प्रक्षेप या विलोप नहीं हुआ है। किन्तु इतना निश्चित् है कि कुछ प्रक्षेपों को छोड़कर अर्धमागधी आगम साहित्य शौरसेनी आगम साहित्य से प्राचीन है। शौरसेनी आगम का प्राचीनतम ग्रन्थ कसायपाहुडसुत्त भी ईस्वी सन् की तीसरी-चौथी शताब्दी से प्राचीन नहीं है। उसके पश्चात् षट्खण्डागम, मूलाचार, भगवती आराधना, तिलोयपण्णत्ति, पिण्डछेदशास्त्र, आवश्यक (प्रतिकमणसूत्र) आदि का क्रम आता है किन्तु पिण्डछेदशास्त्र और आवश्यक (प्रतिक्रमण) के अतिरिक्त इन सभी ग्रन्थों में गुणस्थान सिद्धान्त आदि की उपस्थिति से यह फलित होता है कि ये सभी ग्रन्थ पाँचवी शती पश्चात् के हैं। दिगम्बर आवश्यक (प्रतिक्रमण) एवं पिण्डछेदशास्त्र का आधार भी क्रमशः श्वेताम्बर मान्य आवश्यक और कल्प-व्यवहार, निशीथ आदि छेदसूत्र ही रहे हैं। उनके प्रतिक्रमण सूत्र में वर्तमान सूत्रकृतांग के तेईस एवं ज्ञाताधर्मकथा के उन्नीस अध्ययनों का विवरण तथा पिण्डछेदशास्त्र में जीतकल्प के आधार पर प्रायश्चित देने का निर्देश यह सिद्ध करते हैं कि प्राकृत आगम साहित्य में अर्धमागधी आगम ही प्राचीनतम है चाहे उनकी अन्तिम वाचना पाँचवी शती के उत्तरार्ध (ई सन् 453) में ही सम्पन्न क्यों न हुई हो?
इस प्रकार जहाँ तक आगमों के रचनाकाल का प्रश्न है उसे ई.पू पाँचवी शताब्दी से ईसा की पाँचवी शताब्दी तक लगभग एक हजार वर्ष की सुदीर्घ अवधि में व्यापक माना जा सकता है क्योंकि उपलब्ध आगमों में सभी एक काल की रचना नहीं है। आगमों के सन्दर्भ में और विशेष रूप से अंग आगमों के सम्बन्ध में परम्परागत मान्यता तो यही है कि वे गणधरों द्वारा रचित होने के कारण ई.पू पाँचवी शताब्दी की रचना है। दूसरी ओर कुछ विद्वान उन्हें वल्लभी में संकलित एवं सम्पादित किये जाने के कारण ईसा की पाँचवी शती की रचना मानते है। हमारी दृष्टि से ये दोनों ही मत समीचीन नहीं है। देवर्धि के संकलन, सम्पादन एवं लेखन काल को उनका रचना काल नही माना जा सकता। अंग आगम तो प्राचीन ही है। ईसा पूर्व चौथी शती के पाटलीपुत्र की वाचना में जिन द्वादश अंगों की वाचना हुई थी, वे निश्चित रूप से उससे पूर्व ही बने होगे। यह सत्य है कि आगमों में देवर्धि की वाचना के समय अथवा उसके बाद भी कुछ प्रक्षेप हुए हो, किन्तु उन प्रक्षपों के आधार पर सभी अंग आगमों का रचनाकाल ई. सन् की पाँचवीं शताब्दी नहीं माना जा सकता। डॉ हर्मन याकोबी ने यह निश्चित किया है कि आगमों का प्राचीन अंश ई.पू चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर ई.पू तीसरी शताब्दी के पूर्वार्द्ध के बीच का है। न केवल अंग आगम अपितु दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प और व्यवहार भी जिन्हें आचार्य भद्रबाहु की रचना माना जाता है वे भी याकोबी और शुब्रिग के अनुसार ई.पू. चतुर्थ शती के उत्तरार्ध से ई.पू तीसरी शती के
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