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अनेकान्त/१४
मे से अधजले सर्प को पार्श्वनाथ द्वारा मत्र सुनाने, मत्र के प्रभाव से मरे उस नाग को पाताल में वन्दीवर देव होने, सर्प की मृत्यु के दृश्य को देखकर पार्श्व को वैराग्य होने और जिन दीक्षा लेने आदि का वर्णन किया गया है। ___ भगवान पार्श्वनाथ द्वारा तप, सयम और ध्यान करने, कमठ के जीव असुरेन्द्र द्वारा उनपर भयकर उपसर्ग करने, धरणेन्द्र द्वारा उन उपसर्गो को दूर करने, पार्श्वनाथ को केवलज्ञान उत्पन्न होने आदि का वर्णन इस ग्रन्थ की १४वी सधि मे हुआ है। १४वी सधि मे इन्द्र द्वारा समवशरण की रचना करने, हस्तिनापुर के राजा स्वयभू का जिन दीक्षा लेकर प्रथम गणधर होने, स्वयभू की राजकुमारी प्रभावती (जो पूर्व भव के मरुभूति) की वसुन्धरी नामक पत्नी थी) द्वारा आर्यिका दीक्षा लेकर सघ की प्रधान आर्यिका होने आदि का उल्लेख हुआ है। शेष सधिओ मे भगवान पार्श्वनाथ के विहार, उपदेश आदि का वर्णन विस्तार से किया गया है। ५. विबुध श्रीधर कृत पासणाह चरिउ :
विक्रम की १२वी शताब्दी मे उत्पन्न विबुध श्रीधर (प्रथम) ने अपभ्रश भाषा मे वि०स० ११८९ मे अगहन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को दिल्ली मे “पासणाह चरिउ' की रचना की थी, ऐसा उन्होने अपने ‘वड्डमाणचरिउ' और 'पासणाह चरिउ’ मे उल्लेख किया है। यह ग्रन्थ २४०० गाथा प्रमाण है, जो १२ सधियो और २३८ कड़वको मे समाप्त हुआ है। बुध गोल्ह ओर वील्हा देवी के पुत्र तथा ‘पासणाह चरिउ' के अलावा वड्डमाण चरिउ और 'चदप्पह चरिउ' के सृजक कवि विबुध श्रीधर ने इस गन्थ की रचना परम्परा से प्राप्त पार्श्वनाथ के कथानक के आधार पर की है। इसमे भ० पार्श्व के वर्तमान भव का वर्णन प्रारम्भ मे और विगत भवो को वर्णन अतिम सधियो मे किया गया है। विबुध श्रीधर का यह ग्रन्थ आजतक अप्रकाशित है। इस ग्रन्थ की दो हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ निम्नाकित ग्रन्थ भडारो मे सुरक्षित है -
१ आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर
२ अग्रवाल दि० जैन बड़ा मन्दिर, मोती कटरा, आगरा। ६. देवचन्द्र कृत पासणाह चरिउ : ___डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार कवि देवचन्द्र वि० स० १२वी शताब्दी के कवि, मूल सघ गच्छ के विद्वान और वासवचन्द्र के शिष्य थे। गुदिज्ज नगर के पार्श्वनाथ मन्दिर मे रचित महाकाव्य मे भगवान पार्श्वनाथ के वर्तमान और पर्व भवो को ११ सन्धियो और २०२ कडवको म विभाजित किया है।