Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 114
________________ अनेकान्त/३३ के शिष्य थे। इसकी पत्र सख्या-६३ तथा वेष्टन सख्या-४५ है। इसका रचना काल सं १८४ः आसोज सुदि दशमी है। लेखनकाल सं. १८८५ आषाढ सुदी-१५ है। यह शास्त्रभडार दि जैन मन्दिर ठोलियो का जयपुर की प्रति है। १८. शिखर विलास - इसके कर्ता लालचद हैं। ये भट्टारक जगत्कीर्ति के शिष्य थे। इसकी पत्र सख्या-५७ तथा वेष्टन संख्या-४०/१०० है। इसका रचनाकाल संवत् १८४२ और लेखन काल सं १६४७ है। यह दि जैन पचायती मन्दिर अलवर की प्रति है। १६. शिखर विलास - इसके कर्ता भागचन्द है। इसकी पत्र संख्या-७ तथा वेष्टन सं-६६ है। कुल पद्यो की सख्या-११८ है। यह दि. जैन मन्दिर पं. लूणकरण पाडया जयपुर की प्रति है। २०. शिखर विलास - इसके कर्ता केशरीसिह है। यह गुटका सं. ६ मे सकलित है। इसकी वेष्टन सख्या-१७६ है। यह दि जैन मन्दिर राजमहल (टोक) राजस्थान की प्रति है। सम्भावना है कि इनके शिखरविलास और सम्मेदशिखर विलास दोनो एक ही हो। २१. शिखर विलास - इसके कर्ता रामचन्द्र है। इसकी पत्र सख्या-८ है। सूची मे इसका विषय पूजा लिखा है। यह भी सभव है कि इनके शिखरविलास और सम्मेदशिखर विलास दोनो एक ही हो। २२. सम्मेदशिखर - इसके कर्ता देवकरण हैं। राजस्थान सूची भाग-५, पू ११५७ पर इसका उल्लेख है। प्रति का अन्तिम पद्य इस प्रकार है ---- "लोहाचार्य मुनिंद सुधर्म विनीत हैं। तिन कृत गाथा बंध सुगन्ध पुनीत है।। साह तने अंबुसार सम्मेद विलास जु। देवकरण विनवै प्रभु को दास जु।। श्री जिनवर कू सीस नमावै सोय। धर्मबुद्धि तहां संचरे सिद्ध पदारथ सोय।।" २३. सम्मेदशिखर पच्चीसी - इसके कर्ता खेमकरण है। रा सू भाग-पृ ५ पृ ११०७ पर इसका उल्लेख है, वहाँ इसका रचनाकाल स १८३६ लिखा है।

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