Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 119
________________ मॉगते फिरते है। किन्हीं के साथ मोटरें चलती हैं तो किन्हीं के साथ गृहस्थजन दुर्लभ ोमती चटाइयाँ और आसन के पाटे तथा छोलदारियाँ चलती हैं। त्यागी ब्रह्मचारी लोग अपने लिए आश्रय या उनकी सेवा में लीन रहते हैं। 'बहती गंगा में हाथ धोने से क्यों चूकें।' इस भावना से कितने ही विद्वान् उनके अनुयायी बन ऑख मीच चुप बैठ जाते है या हाँ मे हॉ मिला गुरुभक्ति का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने मे सलग्न रहते हैं। ये अपने परिणामों की गति को देखते नहीं हैं। व्रती के लिए शास्त्र मे नि शल्य बताया है। शल्यो में एक माया भी शल्य होती है। उसका तात्पर्य यही है कि भीतर कुछ रूप रखना और बाहर कुछ रूप दिखाना। व्रती मे ऐसी बात नही होना चाहिए। वह तो भीतर बाहर मनसा-वाचा-कर्मणा एक हो। 'मेरी जीवन गाथा' से साभार 'अनेकान्त' आजीवन सदस्यता शुल्क : १०१.०० रु वार्षिक मूल्य : ६ रु., इस अक का मूल्य : १ रुपया ५० पैसे यह अक स्वाध्यायशालाओ एवं मदिरों की मॉग पर निःशुल्क विद्वान लेखक अपने विचारों के लिए स्वतन्त्र हैं। यह आवश्यक नही कि सम्पादक-मण्डल लेखक के विचारो से सहमत हो। पत्र में विज्ञापन एव समाचार प्रायः नहीं लिए जाते। सपादन परामर्शदाता : श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन, संपादक : श्री पद्मचन्द्र शास्त्री प्रकाशक : श्री भारतभूषण जैन, एडवोकेट, वीर सेवा मदिर, नई दिल्ली-२ मुद्रक · मास्टर प्रिंटर्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली-३२ Regd. with the Ragistrar of Newspaper at R.No. 10591/62

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