Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 117
________________ अनेकान्त/३६ का चवर व हाथ शेष है। हाथी भी काफी अलकृत है। यहाँ से जैन प्रतिमा का पादपीठ मिला है, जिसमे केवल आसन है। नीचे मध्य मे चक्र दोनो ओर सिहों का अकन है। यहाँ से कायोत्सर्ग मुद्रा मे तीर्थंकर प्रतिमा रखी है। देव का चेहरा टूटा है। कर्णचाप, श्रीवत्स, प्रभामण्डल से अलकृत है। वितान मे त्रिछत्र दुदभीक अभिषेक करते हुये गजराज का अकन है। दोनो ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में एक-एक तीर्थकर प्रतिमा अकित है। पादपीठ पर दाये-बाये चवरधारी खडे है। जो एक भुजा से उत्तरी एव दूसरी भुजा मे चवर लिये पारपरिक आभूषण पहने है। इस मदिर की सबसे सुंदर प्रतिमा तेइसवे तीर्थकर पार्श्वनाथ की पद्मासन ध्यानस्थ मुद्रा मे है। प्रतिमा सिरविहीन है। वक्ष पर श्रीवत्स पीछे सर्प की चार कुण्डलियाँ है। दोनो ओर खडे चवरधारियों के पैर ही है। दाये यक्ष बायें यक्षी का अकन है। दोनो पारपरिक आभूषण पहने हुए है। पादपीठ कमलासन के नीचे विपरीत दिशा मे मुख किये सिह एव मध्य मे चक्र एव सर्प का अकन है। इन जैन प्रतिमाओ के अतिरिक्त हनुमान प्रतिमा का मध्य भाग है। दाया खीच का जमीन पर बाया पैर मुडा हुआ है। देव मेखला, वनमाला एव कमर मे कटार बंधी हुई है। स्थापत्य कला एव मूर्तिशिल्प की दृष्टि से मदिर एव प्रतिमाएं लगभग ११वी १२वी शती ईसवी की प्रतीत होती है। केन्द्रीय संग्रहालय, इन्दौर सन्दर्भ सूची १. इ आ. रि १६५६१६५७ पृष्ठ ७६. २ इ. आ रि १६५६-१६५७ पृष्ठ २६. ३. ग्वा पु रि. १६१४-१६१५

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