Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 115
________________ अनेकान्त/३४ २४. शिखरगिरिरास - इसके कर्ता अज्ञात है। यह भट्टारकीय दि. जैन मन्दिर अजमेर की प्रति है। इसकी पत्रसख्या-१३ तथा वेष्टन सख्या-४८० है। प्रति का लेखनकाल श्रावण सुदी-१४ स १६०१ लिखा गया है। २५. सम्मेदशिखर स्तवन - इसके कर्ता ज्ञात नहीं है। पत्र सख्या-६ वेष्टन संख्या-५६५ है। लेखनकाल का उल्लेख नहीं है। प्रति पूर्ण है। यह दि जैन मन्दिर लश्कर जयपुर की प्रति है। २६. सम्मेदशिखर यात्रा वर्णन - इसके कर्ता पं गिरधारीलाल हैं। यह दि. जैन मन्दिर अजमेर के शास्त्रभंडार की प्रति है। इसकी पत्र सख्या-७ है तथा वेष्टन सख्या-६६४ है। इसका रचनाकाल भादव वदी-१२ सवत् १८६६ है। प्रति पूर्ण है। २७. सम्मेदशिखर वर्णन - इसके कर्ता अज्ञात हैं। यह दि जैन मन्दिर लश्कर, जयपुर की प्रति है। इसकी पत्र सख्या-४ तथा वेष्टन सख्या-५३० है। प्रति का लेखनकाल सवत्-१६६२ है। प्रति पूर्ण है। उपर्युक्त रचनाओ के अतिरिक्त मनरगलाल कृत “सम्मेदाचल माहात्म्य" का उल्लेख जैनेन्द्र सिद्धात कोश भाग १, पृ ३४८ पर मिलता है। पूजा साहित्य भी पर्याप्त सख्या में लिखा गया है। हमें जवाहरलाल, नन्दराम, रामचद, भागचद, भ. सरोन्द्रकीर्ति, बुधजन, रामपाल, लालचद, सेवकराम, संतदास, हजारीमल, ज्ञानचद, भागीरथ, द्यानतराय, गगाराम, मोतीराम, मनसुख सागर, तथा अनेक अज्ञात कर्तृक पूजाओं के उल्लेख मिले है, विभिन्न शास्त्र भंडारों मे इनकी पाण्डुलिपियाँ भी उपलब्ध हैं। इनमे से केवल एक-दो पूजाएँ प्रकाशित हुई हैं। __उपर्युक्त शोध-खोज से यह स्पष्ट है कि देश के कोने-कोने मे जैन शास्त्र भडार मौजूद है, उनमे साहित्य उपलब्ध और सुरक्षित है। अत अन्य ग्रन्थो की भी खोज अपेक्षित है। इस दिशा मे मेरा यह छोटा-सा प्रयत्न है। उक्त ग्रन्थ विवरणो से ऐसा लगता है कि अधिकाश ग्रन्थ अप्रकाशित हैं, जो शताब्दियो से अपने उद्धार/सम्पादन -प्रकाशन की बाट देख रहे हैं । अत प्रयत्न अपेक्षित है। व्याख्याता, प्राकृत एवं जैनशास्त्र प्राकृत, जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली (बिहार)-८४४१२८

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