Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 44
________________ अनेकान्त/५ 'आहनीकाः शब्द को ‘दिगम्बरा.' शब्द का विशेषण बना दिया गया है, जो सर्वथा गलत है। एक तो 'आहनीकाः दिगम्बराः ऐसा वाक्य प्रमाणवार्तिक मे कहीं नहीं है, दूसरे, ‘अह्रीका.' के स्थान में आनीका.' कर दिया गया है और ‘आहनीका:' का अर्थ किया गया है-दिनमे चर्या करने वाले। किमाश्चर्यमतः परम् । इस प्रकरण को ठीक से समझने के लिए प्रमाणवार्तिक का अध्ययन आवश्यक है। आचार्य धर्मकीर्ति का प्रमाणवार्तिक एक महत्त्वपूर्ण दार्शनिक ग्रन्थ है। इसमें चार परिच्छेद है और चारो परिच्छेदों मे कुल १४५३ कारिकाए है। प्रमाणवार्तिक के तृतीय परिच्छेद मे साख्यमत के निराकरण के बाद की कारिका इस प्रकार है एतेनैव यदहीका. किमप्यश्लीलमाकुलम् । प्रलपन्ति प्रतिक्षिप्तं तदप्येकान्तसम्भवात् । ३/१८१ अर्थात् सांख्यमत के निराकरण से ही अह्रीका (निर्लज्ज) दिगम्बरो के मत का भी निराकरण हो जाता है। क्योकि दिगम्बरो का कथन अश्लील और आकुल है तथा उसमे एकान्त की सभावना बनी रहती है। प्रमाणवार्तिक मे उक्त कारिका के ऊपर जो शीर्षक है वह 'जैनमतनिराकरणम्' है, न कि 'जैनमतप्रशसनम् । अब उक्त कारिका मे धर्मकीर्ति ने जिन शब्दो का प्रयोग किया है उन पर ध्यान देना आवश्यक है। धर्मकीर्ति ने जैनों को अह्रीक (निर्लज्ज) कहा है तथा उन के कथन को प्रलाप (बकवास) बतलाया है। क्योकि उनका कथन अश्लील (अशोभनीय) और आकुल (व्याकुल) है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि उक्त कारिका मे केवल अह्रीक शब्द आया है, इसके साथ दिगम्बर शब्द नहीं है। यहाँ 'अह्रीका.' शब्द ‘प्रलपन्ति क्रिया का कर्ता है। उक्त कारिका की मनोरथनन्दिकृत टीका में 'अह्रीका ' का अर्थ "दिगम्बरा.' किया गया है। क्योकि दिगम्बरो के साधु अहीक (निर्लज्ज) अर्थात् नग्न होते है। इस प्रकार प्रमाणवार्तिक के टीकाकार मनोरथनन्दि ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पूर्वोक्त कारिका मे अह्रीक शब्द का प्रयोग दिगम्बरों के लिए किया गया है। प्रमाणवार्तिक के तृतीय परिच्छेद

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