Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 88
________________ अनेकान्त/७ 'संस्कृत शब्दों से प्राकृत बनाने के नियम दिए हैं'-(प्राकृत विद्या ६/३) के अनुसार ऐसा शौरसेनी व्याकरण का कौन-सा सूत्र है, जो 'न' को 'ण' कर देता हो ? अन्य प्राकृतों में तो 'न' को 'ण' करने के हेमचन्द्र के सूत्र 'वाऽऽदौ' ८/१/२२६ और 'नो णः ८/१/२२८ और प्राकृत प्रकाश का सूत्र 'नो णः सर्वत्र' २/४२ हैं। क्या शौरसेनी पक्ष व्यामोहियों को इनका हस्तक्षेप स्वीकार है ? 'आइरियाण' शब्द संस्कृत के आचार्य शब्द से बना है। शौरसेनी के विशेष सूत्रों में ऐसा कौन-सा सूत्र है जो 'चा' को 'इ' में बदल देता है ? अन्य प्राकृत नियमों में हेमचन्द्र का 'आचार्ये चोऽच्च' ८/१/७३ सूत्र है जो 'चा' को 'इ' में बदल देता है। क्या शौरसेनी में इसका दखल स्वीकार है? तीसरा शब्द 'लोए' है (जिसे लोगे भी बोला जाता है) क्या शौरसेनी मे 'क' को 'ग' करने का कोई सूत्र है? हॉ, अपभ्रश में 'अनादौ स्वरादनुक्तानां क ग त थ प फां ग घ द ध बभा:-हेम. ८/४/३६६ सूत्र अवश्य है जो 'क' को 'ग' कर देता है। क्या शौरसेनी मे उसका दखल स्वीकार है ? व्याकरण के नियम से लोये बनने का तो प्रश्न ही नहीं। यतः लुप्त व्यंजन के स्थान पर 'य' श्रुति होने का विधान वहीं हैं जहाँ लुप्त व्यंजन के पूर्व मे 'अ' या 'आ' हो, देखे-हेम. ८/१/१८० 'अवर्णो य श्रुति।' यहाँ तो लुप्त वर्ण से पूर्व ओ है। चौथा शब्द 'साहूण' है, जो सस्कृत के साधु शब्द से निष्पन्न है। क्या शौरसेनी में कोई सूत्र है जो 'ध' को 'ह' में बदल देता हो ? अन्य प्राकृतो में तो हेमचन्द्र का सूत्र ‘ख घ थ ध भाम्' ८/१/१८७ है जो 'ध' को 'ह' में बदल देता है। क्या उक्त रूपों में शौरसेनी वालों को उक्त सूत्रों के दखल स्वीकार हैं ? यदि हॉ, तो भाषा मिश्रित हुई और नहीं तो शौरसेनी के स्वतंत्र नियम कौन-से हैं ? जो वैयाकरणों ने विशेष रूप में दिए हों ? उक्त विषय में विचार इसलिए भी जरूरी है कि उक्त मन्त्र को सभी जैन सम्प्रदाय वाले मान्य करते हैं और शौरसेनीकरण की मुहिम के कारण यह मंत्र विवाद में पड़ने वाला है। आगे चलकर हमारे

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