Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 100
________________ अनेकान्त/१६ विद्याधरो को छोडकर आगे बढ गई. वे शोकाहत और मलिनमुख हो गये। ___ 'रघुवश' मे दिलीप की गोसेवा के प्रसंग मे कहा गया है कि राजा दिलीप नन्दिनी नाम की गाय के खडे हो जाने पर खडे हो जाते थे। जब वह चलती थी, तब राजा भी चलने लगते थे। जब वह बैठ जाती थी, तब राजा भी बैठ जाते थे। जब वह जल पीती थी, तब राजा भी जल पीते थे। इस प्रकार राजा ने छाया के समान नन्दिनी का अनुसरण किया था । स्थितः स्थितामुच्चलितः प्रयातां निषेदुषीमासनबन्धधीरः । जलाभिलाषी जलमाददानां छायेव तां भूपतिरन्वगच्छत्।। (रघुवश, २/६) 'पद्मचरित' मे भी रत्नश्रवा का केकसी द्वारा अनुगमन इसी प्रकार वर्णित है व्रजन्ति व्रज्यया युक्त तिष्ठन्ती स्थितिमागते। छायेव सा त्वभवत् पत्यनुवर्तनकारिणी।। (पद्मचरित, ७/१७०) अर्थात्, जब रत्नश्रवा चलता था, तब केकसी भी चलने लगती थी और जब रत्नश्रवा बैठता था, तब केकसी भी बैठ जाती थी। इस तरह वह छाया के समान पति की अनुगामिनी थी। कालिदास-कृत 'अभिज्ञानशाकुन्तल' मे एक प्रसग है कि मारीच ऋषि ने सर्वदमन के रक्षाकरण्डक मे 'अपराजिता' नामक औषधि बाँध रखी थी। भूमि पर गिरी हुई उस औषधि को माता, पिता तथा स्वयं के अतिरिक्त कोई अन्य नहीं ग्रहण कर सकता था। यदि कोई उसे ग्रहण कर लेता था, तो वह सर्प बनकर डॅस लेती थी। उसे दुष्यन्त ने अनायास ही उठा लिया, किन्तु पिता होने के कारण उसका उस पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पडा।' 'पदमचरित' मे रावण के बाल्य जीवन के विषय में कहा गया है कि बहुत पहले मेघवाहन के लिए राक्षसों के इन्द्र भीम ने जो हार दिया था, हजार नागकुमार जिसकी रक्षा करते थे, जिसकी किरणे सब ओर फैल रही थीं और राक्षसों के भय से इस अन्तराल मे जिसे किसी ने नहीं पहना था, ऐसे हार को उस बालक ने अनायास ही हाथ से खींच लिया। बालक को मुट्ठी में हार लिये देख माता घबरा गई। उसने बड़े स्नेह से उसे उठाकर गोद में लिया और शीघ्र ही उसका मस्तक सूंघ लिया। पिता ने भी हार लिये

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