Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 110
________________ अनेकान्त/२६ ५. सम्मेदाचलपूजा विधान - इसके कर्ता अज्ञात हैं। प्रति पूर्ण है। लेखनकाल सं १८२६ है। यह जैन सिद्धांत भवन, आरा की प्रति है। अन्य विवरण इस प्रकार है ---- प्रारंभ - मुक्तिकान्तां प्रदातारं स्थानेषु स्थानमुत्तमम् । मुक्तितीर्थकर प्राप्य वन्दे शैलेन्द्रसिद्धिदम् ।। १।। अन्त · वज्रीचंद्रप्रतेन्द्रषेद्रतरणी ---- प्राप्नुवन्ति शिवम् ।। १३।। प्रशस्ति - इति सम्मेदाचलपूजन विधान समाप्तम्। संवत् १८२६ भाद्रवदि १२ भौम दिने लिषि। इनके अतिरिक्त भट्टारक सुरेन्द्रकीर्ति कृत सम्मेदशिखर पूजा, दीक्षित देवदत्तकृत सम्मेदशिखरमाहात्म्यपूजा, अज्ञातकर्तृक सम्मेदाचलपूजा उद्यापन, अज्ञात कर्तृक सम्मेदाशिखरपूजा सस्कृत की अन्य रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं। हिन्दी भाषा की रचनाएँ ६. सम्मेदशिखर माहात्म्य - इसके कर्ता लालचद है। जैन सिद्धांत भवन, आरा में इसकी तीन प्रतियाँ उपलब्ध हैं। ये तीनों पूर्ण हैं तथा इनकी दशा सामान्य है। प्रथम प्रति का विवरण इस प्रकार है -- प्रारभ - पच परमगुरु को नमो, दोकर सीस नवाय। श्री जिन भाषित भारती, ताको लागो पाय।। अन्त - रेवा सहर मनोग, बसैं श्रावग भव्य सब। आदित्य ऐश्वर्य योग, तृतीय पहर पूरन भयो।। प्रशस्ति - इति श्री सम्मेदशिखरमाहात्म्ये लोहाचार्यानुसारेण भट्टारक श्री जगत्कीर्ति तच्छिष्य लालचंदविरचिते सूबरकूटवर्णनो नाम एकविंशतिः सर्गः ।। २१।। समाप्त भया। इति श्री सम्मेदशिखर माहत्मजी सम्पूर्णम्। लिखितं गुलालचद अगरवाले जैनी कानसीलगोत्रस्य पुत्र बाबू मुन्नीलालजी के। श्लोक ।। १२६०|| मिति जेठ वदी ५ रोज सनीचर। सवंत् १६३३ साल के सम्पूर्ण भया। पत्र चौंतीस। उक्त ग्रन्थ की दूसरी प्रति की अन्तिम प्रशस्ति इस प्रकार है-- “मिति चैत्र शुक्ल ८ रविवार दस्तखत दुरगादास संवत् १९३७ साल।

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