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समसामयिक सन्दर्भो में मुख्तार सा. की
कालजयी दृष्टि
-डॉ. सुरेशचन्द्र जैन, नई दिल्ली
विद्वानेव, जानाति विद्वज्जन परिश्रमम् । मुख्तार उपनाम से विख्यात श्री जुगलकिशोर जी की साहित्य साधना, जिन-आगमो के सत्यान्वेषण की उत्कट इच्छा के साथ विशिष्ट सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय सर्वोन्नति-भावना की सर्वोच्च दृष्टि का होना उनका विशिष्ट अवदान है। सामाजिक चेतना दृष्टि का विकास व निर्माण समाज में प्रचलित धारणाओं-विश्वासो रूढियों के मध्य चलने वाले अन्तर्द्वन्द्व के रूप में प्रकट होता है। मूलत: समाज व्यक्तियो का समूह है और समाज मे प्रचलित धारणा सास्कृतिक चिन्तन से जुडी होती है या जोड दी जाती है। कालान्तर मे यही धारणाएँ स्वार्थ व रूढियो मे परिवर्तित होकर सास्कृतिक सामाजिक चिन्तन को या तो दूषित करती है या समाप्तप्राय करने मे प्रवृत्त हो जाती है। इन सभी अन्तर्द्वन्द्वों के मध्य ही व्यक्ति और समाज अपनी प्रगति का मार्ग चुनता है। आपाततः किसी भी व्यक्ति या समाज की प्रगति और समुन्नति का आधार उसकी विहंगम दृष्टि पर केन्द्रित होती है। यथादृष्टिः तथासृष्टि: से समाज व देश गतिमान होता है। इस परिप्रेक्ष्य मे मुख्तार सा की दृष्टि शुद्ध तार्किक न होकर आगमनिष्ठ, व्यवहारिक एव सवदेनाओ से परिपूर्ण थी। उन्होंने आगम और तन्निहित तथ्यों-कथ्यों को सत्यान्वेषी दृष्टि से खोजा और उसका प्रतिपादन भी पूरी निष्पक्षता के साथ किया।