Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 92
________________ अनेकान्त/११ क्रान्तिद्रष्टा-सर्वोदयी दृष्टि ___मुख्तार सा. बचपन से ही विलक्षण तर्कशक्ति सम्पन्न थे। समाज और राष्ट्र की तत्कालीन परिस्थितियों से उनका व्यक्तित सामञ्जस्य स्थापित कठिन हो रहा था। ऐसे ही समय मे जर सन् १६१४ मे महात्मा गाधी के नेतृत्व में सत्याग्रह अनुप्राणित स्वतन्त्रता आन्दोलन ने जोर पकडा तो उन्होने भी मुख्तारगिरी छोडकर सामाजिक-धार्मिक सत्याग्रह पर विशेष ध्यान देना प्रारम्भ कर दिया। उनका दृढ विश्वास था कि सत्याग्रह आन्दोलन की सफलता सामाजिक और धार्मिक धरातल पर वास्तविक ठोस परिवर्तनो पर निर्भर है। अन्धश्रद्धा और कुरीतियों मे जकड़ा समाज सत्याग्रह जैसे आन्दोलन मे तभी सक्रिय हो सकता है जब उसमे कुरीतियो और अन्धश्रद्धा से लडने का जज्वा पैदा हो। इस सन्दर्भ मे मर्मान्तक चोट करते उनके लेख "जैनियो मे दया का अभाव" 'जैनियो का अत्याचार', 'नौकरो से पूजा कराना', 'नैनी कौन हो सकता है', 'जाति पचायतो का दण्ड विधान' आदि सामाजिक क्रान्ति दृष्टि के सूचक है। मुख्तार सा. का यह विश्वास था कि व्यक्ति इकाई के सुधार से ही समाज का पुनरुत्थान सम्भव है। जब तक समाज अन्तर्विरोध, रूढियो और अन्धविश्वासो की चहारदीवारी में कैद रहेगा तब तक न व्यक्ति की चेतना जागेगी और न ही उसमे राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव जागेगा। सन् १६१६ मे मुख्तार सा (युगवीर) द्वारा रचित 'मेरी भावना' पद्यांश उनकी उदात्त, सर्वोदयी और व्यक्तिनिष्ठ क्रान्ति का द्योतक है मैत्रीभाव जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे, दीन दुखी जीवों पर मेरे, उर से करुणास्रोत बहे। दुर्जन-क्रूर कुमार्गरतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे, साम्यभाव रक्खं मैं उन पर ऐसी परिणति हो जावे।। श्रमण संस्कृति की सर्वोदयी भावना का प्रतीक यह पद्याश केवल कविकृत कल्पना की सृष्टि नही वरन् तत्कालीन सामाजिक विषमताओं

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