Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 97
________________ अनेकान्त/१६ परिचय दिया है वैसा आगे हो सकेगा इसकी सम्भावना क्षीणप्रायः ही है क्योंकि आज प्राच्य सस्थाओ को सचालित करने की अपेक्षा युगानुरूप व्यवसायीकरण की प्रवृत्ति हावी है। प्रातः स्मरणीय पू वर्णीजी द्वारा सुस्थापित प्राच्य संस्थाये मृतप्रायः है उनकी ओर कदाचित् ही लोगो की दृष्टि जाती है। ऐसी स्थिति मे सामाजिक एव धार्मिक-शिक्षण-क्रान्ति के प्रतीक इन महत्वपूर्ण केन्द्रो के नष्ट हो जाने पर २१वीं शताब्दी निश्चित रूप मे रिक्तता का अनुभव करेगी। सस्था संचालन में मुख्तार सा. की कालजयी दृष्टि थी। उनकी धारणा थी कि सामाजिक सम्पत्ति की सुरक्षा व्यक्तिगत सम्पत्ति की सुरक्षा से भी अधिक महत्वपूर्ण है। व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का यथेच्छया उपयोग और नष्ट तक कर सकता है परन्तु सामाजिक सम्पत्ति के कणमात्र को भी नष्ट करना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इस धारणा के ठीक विपरीत आज सामाजिक सम्पत्ति की सुरक्षा करने की बात तो दूर उसके नष्ट होने की प्रतीक्षा की जाती है या उस पर अपना स्वत्व स्थापित करने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद की कुचेष्टाएँ की जा रही है। सामाजिक दायित्व की भावना का प्रायः अभाव देखा जा रहा है और व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति का भाव चरमोत्कर्ष स्थिति पर है। यदि ऐसे मे दृष्टि नहीं बदली तो सामाजिक सस्थाओ का भविष्य निश्चित ही अधकारमय है। या तो वे व्यावसायिक केन्द्र बन जायेगे या वे कालकवलित हो जायेगी। 'युगवीर' मुख्तार सा. कवि जगत में युगवीर के रूप में जाने जाते हैं। उनकी मेरी भावना समग्र रूप में एक युग चिन्तन का प्रतिनिधित्व करती है। समता, सहिष्णुता, मैत्री, वात्सल्य, करुणा, निर्भीकता जैसे उदात्तगुणो को अभिव्यक्त करती मेरी भावना मात्र युगवीर मुख्तार सा. की वैयक्तिक भावना ही नहीं है वह तो समग्रतः सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय संवेदना को व्यक्त करती हुई अजस्र शान्ति स्रोत स्वरूप है जिसकी धारा न कभी अवरुद्ध होने वाली है न ही उसे किसी विश्राम की ही

Loading...

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120