Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 79
________________ . .. ..पृष्ठ २ का शेष ग्रथ की उक्त टीका से ‘इति' शब्द और विराम को हटाकर 'प्रत्युक्ताः' के स्थान पर 'प्रयुक्तः' कर देना-श्वेताम्बर ग्रथ को विरूप कर देना कहाँ तक उचित था। प्रो० उदयचन्द्र दर्शनाचार्य के लेख से स्पष्ट है कि कथित विद्वान ने भी बौद्ध दर्शन के ग्रन्थ के उद्धरण को बदलकर प्रस्तुत करने का अनर्थ किया है और ‘अह्रीका को बदल 'आह्नीका ' कर दिया है। हमने राहुल सांकृत्यायन द्वारा संपादित ‘प्रमाणवार्तिक की टीका को भी देखा है। उसमे स्पष्ट अंकित है-'अह्रीका नग्नतया निर्लज्जा क्षपणकाः।' जबकि लेखक ने शब्द और अर्थ दोनों ही बदल दिए । पता नहीं इनकी साध किस किसको बदलने की है? -सम्पादक 'अनेकान्त' आजीवन सदस्यता शुल्क : १०१.०० रु वार्षिक मूल्य : ६ रु., इस अक का मूल्य १ रुपया ५० पैसे यह अंक स्वाध्याय शालाओ एवं मंदिरो की माग पर निःशुल्क विद्वान लेखक अपने विचारो के लिए स्वतन्त्र है। यह आवश्यक नही कि सम्पादक-मण्डल लेखक के विचारो से सहमत हो। पत्र में विज्ञापन एव समाचार प्रायः नही लिए जाते। सपादन परामर्शदाता : श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन, संपादक श्री पद्मचन्द्र शास्त्री प्रकाशक : श्री भारत भूषण जैन एडवोकेट, वीर सेवा मंदिर. नई दिल्ली-२ मुद्रक : मास्टर प्रिंटर्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली-३२ Regd. with the Ragistrar of Newspaper at R.No. 10591/62

Loading...

Page Navigation
1 ... 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120