Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 83
________________ ये प्रायोजित तीर्थ? तीर्थं करोतीति तीर्थंकर :-तीर्थ का प्रवर्तन करने वाले तीर्थकर होते हैं। जिनशासन के लिए २०वीं शताब्दी, विशेष रूप से अन्तिम डेढ दशक उल्लेखनीय और स्मरणीय माने जायेंगे क्योकि बीते लम्बे समय मे शायद ही इतने तीर्थ बने हो जितने गत डेढ दशक में बने है या आगे निर्मित होंगे। प्राचीन तीर्थों को कब और किसने बनाया यह आज भी शोध और खोज का विषय है। उनके तीर्थक्षेत्र होने और उनकी प्रसिद्धि के विषय मे पौराणिक आख्यान उपलब्ध भी होते हो, परन्तु अब जो बन रहे हैं उनके पीछे कौन से पौराणिक-आगमिक आख्यान है ? नये तीर्थो से धर्म की प्रभावना कम बल्कि व्यक्तिनिष्ठ ख्यातिलाभ की तृष्णा की भावना ही ज्यादा झलकती है। विडम्बना तो यह है कि इन नये तीर्थो का निर्माण अपरिग्रही ज्ञान-ध्यान-तप में लीन रहने वाले उन योगियो द्वारा हो रहा है, जिन्होने आत्मकल्याण की चाह मे समस्त परिग्रह को छोडकर तथा निर्ग्रन्थ वेश धारण कर वीतराग मार्ग को अपनाया था। नए कुछ सभावित तीर्थों की स्थापना चिन्तनीय है इन नए तीर्थो के लक्ष्य और अभीष्ट भी भिन्न-भिन्न होगे ही। यक्ष प्रश्न है कि जब हमारे सम्मुख प्राचीन तीर्थो के जीर्णोद्धार, रख-रखाव और उनकी सुरक्षा से जुडी समस्याये विकराल रूप में मौजूद हैं तब इन नए-नए तीर्थो की स्थापनाओं और उनके प्रस्तावों से जिन-शासन की क्या प्रभावना होगी? यह सोचना निरर्थक नही है क्योकि इन प्रस्तावित तीर्थो की स्थापना के पीछे प्रदर्शन और प्रतिष्ठा की चाह स्पष्ट रूप से लक्षित होती है। हमें कभी-कभी लगता है कि जिनके धन से इन तीर्थों का निर्माण और नित नए पचकल्याणक आदि हो रहे हैं उनके नाम पर ही कल को तीर्थ न बनाये जाने लगे। पचकल्याणक जैसे आयोजनो में धर्म-प्रभावना तो न के बराबर होती है जबकि इनमे आय के स्रोत ढूँढ़कर नाम लाभ

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