Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 55
________________ अनेकान्त/१६ ऐसे समय में तीर्थकर पार्श्वनाथ ने श्रमण परम्परा के अनुसार अहिसामूलक धर्म का प्रचार-प्रसार किया और जन सामान्य को सद्धर्म के मार्ग पर लगाया। तीर्थकर पार्श्वनाथ के काल को सक्रमण काल कहा जा सकता है क्योकि वह समय ब्राह्मण युग के अन्त और औपनिषद् या वेदान्त युग के आरम्भ का समय था। जहाँ उस समय शतपथ ब्राह्मण जैन ब्राह्मण ग्रन्थ का प्रणयन हुआ वहाँ वृहदारण्यकोपनिषद् के दृष्टा उपनिषदों की रचना का सूत्रपात हुआ था। ऐसे समय मे पार्श्वनाथ ने चातुर्याम धर्म का प्रतिपादन किया। वह चातुर्याम धर्म (१) सर्वप्रकार के हिसा का त्याग, (२) सर्वप्रकार के असत्य का त्याग, (३) सर्वप्रकार के अदत्तादान का त्याग, (४) सर्वप्रकार के परिग्रह का त्याग । इन चार यामो का उद्गम वेदो या उपनिषदो से नही हुआ, किन्तु वेदो के पूर्व से ही इस देश मे रहने वाले तपस्वी, ऋषि-मुनियो के तपोधर्म से इनका उद्गम हुआ है।१६ पार्श्वनाथ और नाग जाति कुमार पार्श्व द्वारा नागयुगल की रक्षा सबधी घटना को पुरातत्वज्ञ और इतिहासज्ञ पौराणिक रूपक के रूप मे स्वीकार करते हुए यह निष्कर्ष निकालते है कि पार्श्वनाथ के वश का नागजाति के साथ सौहार्दपूर्ण सबध था। चूकि पार्श्वनाथ ने नागो को विपत्ति से बचाया था। अत नागो ने उनके उपसर्ग का निवारण किया। महाभारत के आदिपर्व मे जो नागयज्ञ की कथा है उससे यह सूचना मिलती है कि वैदिक आर्य नागो के बैरी थे। नाग-जाति असुरो की ही एक शाखा थी और असुर जाति की रीढ़ की हड्डी के समान थी। उसके पतन के साथ ही असुरो का भी पतन हो गया।१७ जब नाग लोग गगा घाटी मे बसते थे, तो एक नाग राजा के साथ काशी की राजकुमारी का विवाह हुआ था। अतः काशी के राजघराने के साथ नागो का कौटुम्बिक सबध था।१८ नागजाति एव नाग पूजा का इतिहास अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। विद्वानो का मत है कि नागजाति और उसके वीरो के शौर्य की स्मृति को

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