Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ अनेकान्त/३६ मे वजा हो और सम्पूर्ण विश्व मे तुम्हारा यश व्याप्त है, इसलिए तुम्हें मेरा नमस्कार है।६ सरस्वती कल्प यह रचना गद्य-पद्यमय है। इसके कर्ता बप्पभट्टि सूरि है। प्रारम्भ मे सरस्वती की स्तुति की गई है। पश्चात् अर्चन मन्त्र, आत्मशुद्धि मंत्र, सकलीकरण, सारस्वत यत्र विधि कही गई है। आगे सरस्वती को सिद्ध करने की विधि वर्णित है। साथ मे बप्पभट्टिसूरि कृत आम्नाय भी है। यहाँ कहा गया है कि मूलमंत्र का एक लाख जाप तथा दशांश होम करने से सरस्वती सिद्ध हो जाती है। सरस्वती की सिद्धि से अद्वितीय विद्वत्ता प्राप्त होती है। इसका प्रकाशन “भैरवपद्मावती कल्प” में हुआ है। चिन्तामणि कल्प .. इसका प्रकाशन “जैनस्तोत्रसन्दोह' भाग-२ पृ० ३०-३४ पर हुआ है। इसमे कुल ४७ पद्य है। अन्तिम पद्य मे रचनाकार का नाम “धर्मघोष सूरि लिखा है तथा उन्हे मानतुंग का शिष्य कहा गया है। इसमे पार्श्वनाथ को प्रणाम करके "चिन्तामणि कल्प” लिखने की प्रतिज्ञा की गई है। इसमें साधक का स्वरूप, यन्त्रोद्धार और साधन की विधि बताई है। यह भी कहा है कि वशीकरण, स्तभन, मोहन, विद्वेषण और उच्चाटन कर्मो का मन मे विचार भी नहीं करना चाहिए, केवल धर्मवृद्धि कारक शान्तिक और पौष्टिकता का ही विचार करना चाहिए । एच०आर० कापडिया ने इसका समय १५-१६वीं सदी माना है। रक्त पद्मावती कल्प अज्ञात कर्तृक यह रचना-“भैरवपद्मावती कल्प" मे प्रकाशित है। यह केवल गद्यात्मक है। इसमे मत्र, यंत्र और पूजा की विशिष्ट विधि बतलाई गई है। यहाँ पद्मावती की सिद्धि को सर्वकर्मकर कहा गया है। यत्र को आकर्षणादि षट्कर्म कर बताया है। एच०आर० कापडिया ने पद्मावती की अनेक मूर्तियों का उल्लेख किया है। इसकी संवत् १७३८ की हस्तलिखित प्रति जैन सिद्धान्त भवन, आरा के संग्रह में है, जो अन्य प्राचीन प्रति पर से तैयार की गई है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120