Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 59
________________ अनेकान्त/२० चन्द्रपुरी (चन्द्रवती) काशी से २० किमी० दूर आठवे तीर्थकर चन्द्रप्रभु के जन्मस्थान से संबंधित है। जिसके सन्दर्भ मे परम्परागत स्रोत उपलब्ध होते है। उक्त तथ्यों के आलोक मे काशी की जैन श्रमण परम्परा का विशिष्ट स्थान है। जैन स्मृति अवशेष उसकी प्राचीनता और व्यापकता को स्पष्ट करते है। भारत मे कही भी उत्खनन से प्राप्त होने वाली सामग्रियों मे से श्रमण परम्परा के २३वे तीर्थकर पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं सबसे अधिक प्राप्त होती है। तात्पर्य यह है कि काशी की परम्परा का सम्पूर्ण देश परं कालजयी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। सन्दर्भ सूची १ भारतेन्दु समग्र-पृष्ठ ६४९, ६५० । २ रामायण-बालकाण्ड-४५, २२-२६, ६६ । ११-१२, ६, १, १६. २७। ३. महाभारत द्रोण -७४, ५६, ६१, १६९, २९ । ४ बुद्ध चरित्र.-१०. ३. १. ९३। ५ इत्थ प्रभाव ऋषभोऽवतार. शकरस्य मे। सता गतिर्दीनबन्धुर्नवम कथितवस्तव। ऋषभस्य चरित्रं हि परम पावन महत् । स्वयं यशस्यमायुध्य श्रोतव्य च प्रचत्नत ॥शिवपुराण ४. ४७-४८ ६ ध्वला टीका-१ पृष्ठ ४५, ४६ । ७ ब्रह्मा देवानां प्रथम सवभूव विश्वस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता मुण्डकोपनिषद १, १ । आधार-डॉ० राजकुमार जैन, ऋषभदेव तथा शिव संबंधी प्राच्य मान्यताएं-अनेकान्त वर्ष १९-अक १-२ ८ वाराणसीए पुडवी सुपइटेहि सुपास देवाय । जेट्ठस्स सुक्कवार सिदिणम्भि जादो विसाहाए ॥तिलोयपण्णत्ति-४/५३२

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