Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 69
________________ अनेकान्त/३० चतुर्थ अधिकार मे अम्बिका देवी, सरस्वती देवी और पद्मावती देवी की आराधना का विधान बताते हुए उन्हे सर्वकार्य साधिका निरूपित किया है। इस अधिकार के तीसवे पद्य मे “सेतुबन्ध काव्य का उल्लेख प्राप्त होता है। आगे कहा है कि मनीषियो को सत्पात्रो मे सिद्धि का व्यय करते रहना चाहिए, अन्यथा सिद्धि क्षीण हो जाती है। पचम अधिकार मे गुरुशिष्य दोनो के लिए दिशानिर्देश है। अन्त मे ग्रन्थकार ने कहा है कि योग्य पात्रो के हित की कामना से मैने श्रुतसागर का आलोडन करके महारत्नो के समान इन मत्रों का कथन किया है। ज्वालामालिनी कल्प इसके कर्ता इन्द्रनन्दि है। इनके गुरु का नाम बप्पनन्दि या बप्पणनन्दि है। ग्रन्थप्रशस्ति के अनुसार इसका रचना काल शक सम्वत् ८६१ (ई० सन् ९३९) है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति जैन सिद्धान्त भवन, आरा मे सुरक्षित है। इसका प्रकाशन सन् १९६६ मे मूलचन्द किसनदास कापडिया सूरत ने किया है। इसमे स्व० प० चन्द्रशेखर शास्त्री की भाषा टीका भी छपी है।१० इस ग्रन्थ का समीक्षात्मक विवरण अनेकान्त वर्ष १, पृष्ठ ४३० एव ५५५ आदि पर जुगलकिशोर मुख्यार ने प्रकाशित किया था। इसमे कुल पाच सौ श्लोक है। ग्रन्थ दस अधिकारो मे विभक्त है-(१) मत्री (२) ग्रह (३) मुद्रा (४) मडल (५) कटुतैल (६) यत्र (७) वश्यतत्र (८) स्नपन विधि (९) नीराजन विधि और (१०) साधन विधि। ग्रन्थ मे ज्वालामालिनी देवी की स्तुति, मत्र एव सिद्धि विधान वर्णित है। प्रथम पद्य मे चन्द्रप्रभ की वन्दना की गई है। यहाँ ज्वालामालिनी देवी का स्वरूप बतलाते हुए कहा गया है कि उसका शरीर श्वेत वर्ण है, वाहन महिष है, यह उज्ज्वल आभूषणो से युक्त है, इसके आठ हाथ हैं, जिनमें क्रमश त्रिशूल, पाश, मत्स्य, धनुष, मंडल, फल, वरद (अग्नि) और चक्र धारण किये है। इस ग्रन्थ में ज्वालामालिनी देवी के सिद्धि विधान का विस्तार से कथन करने के बाद कौमारी देवी, वैष्णव देवी, वाराही देवी, ऐन्द्री देवी, चामुण्डा देवी एवं महालक्ष्मी देवी की पूजन विधि कही गई है। ग्रन्थ का वैशिष्ट्य दिखाने के लिए विदुषी कमलश्री का वृत्तान्त दिया गया

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