Book Title: Anekant 1998 Book 51 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 14
________________ अनेकान्त/१५ यह ग्रन्थ अप्रकाशित है। वि०स० १५४९ मे लिखित इस ग्रन्थ की एक प्रति प० परमानन्द शास्त्री के निजी सग्रह मे और वि०स० १५२० मे लिखित एक प्रति ‘पासपुराण' के नाम से सरस्वती भवन नागौर मे सुरक्षित है। ७. महाकवि रइधु कृत पासणाह चरिउ : ___प्रो० डॉ० राजाराम जैन के अनुसार हरिसिह और विजय श्री के तीसरे पुत्र तथा वि०स० १४५७ से १५३६ के महाकवि और गोपाचल (ग्वालियर) को अपने जन्म से पवित्र करने वाले रइधु ने ३७ ग्रन्थो की रचना की थी। इन्होने अपभ्रश भाषा मे “पासणाह चरिउ” नामक ग्रन्थ भी रचा। सात सधियो और १३८ कड़वको वाले इस ग्रन्थ के प्रारम्भ मे भगवान पार्श्वनाथ के वर्तमान भव का और अन्त मे पूर्व भवो का वर्णन उत्तरपुराण के आधार पर किया है। प्रथम सधि मे वाराणसी के राजा अश्व और रानी वामा देवी के वैभव का वर्णन करने के पश्चात् दूसरी सधि मे भगवान पार्श्वनाथ के गर्भ और जन्म कल्याणक का विवेचन करते हुए कहा गया है कि बैशाख कृष्ण द्वितिया को भ० पार्श्वनाथ वामा देवी के गर्भ मे अवतरित हुए थे और पौष कृष्ण एकादशी के शुभ नक्षत्र मे उनका जन्म हुआ था। इन्द्र ने इनका नाम पार्श्वनाथ रखा था। इसके पश्चात् बतलाया गया है कि भगवान पार्श्वनाथ ने ३० वर्ष तक बाल क्रीड़ाये की। तीसरी सधि मे कुशस्थल के राजा अर्ककीर्ति के प्रस्ताव को पार्श्व द्वारा पवनराजा से जीते गये युद्ध, प्रभावती के साथ विवाह कराने सबधी अर्ककीर्ति के प्रस्ताव को पार्श्व द्वारा स्वीकार किये जाने, तापसो द्वारा जलाये जाने वाले वृक्ष के कोटर के मध्य से निकले अधजले सर्पयुगल को उनके द्वारा मत्र दिये जाने, उनकी मृत्यु से पार्श्वनाथ को वैराग्य होने का वर्णन किया गया है। इस प्रसग मे अनुप्रेक्षाओ का जैसा विशद् वर्णन किया गया है वैसा इनके पूर्ववर्ती किसी “पासणाहचरिउ” मे उपलब्ध नहीं है। चौथी सधि मे प्रमुख रुप से पार्श्वनाथ द्वारा ली गई जिन दीक्षा, सवर देव द्वारा किये गये घोर उपसर्गो को धरणेन्द्र और पद्मावती द्वारा दूर करने, चैत्र माह के कृष्णा पक्ष की चतुर्थी और शुभ नक्षत्र मे भ० पार्श्वनाथ को केवल ज्ञान प्राप्त होने सवरदेव द्वारा क्षमा मागने आदि का वर्णन किया गया है। शेष सधियो मे पार्श्वनाथ के विहार, उपदेश, पूर्व भवान्तरो सम्मेद शिखर पर श्रावण शुक्ला सप्तमी को निर्वाण होने का विवेचन उपलब्ध है।

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